इस्लाम की सुंदरता (3 का भाग 3): ईश्वर को सुंदरता पसंद है
विवरण: इस्लाम की सुंदरता का तीसरा और अंतिम भाग। हमने सचमुच सैकड़ों में से दस सुंदरताओं को चुना है, आपने और कौन-कौन से देखें है?
- द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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8.पुरुषों और महिलाओं की समानता
क़ुरआन कहता है कि सभी विश्वास करने वाले एक समान हैं और केवल अच्छे काम ही एक व्यक्ति को दूसरे से अलग बनाते हैं। इसलिए विश्वास करने वाले पवित्र पुरुषों और महिलाओं का बहुत सम्मान करते हैं और इस्लामी इतिहास हमें यह भी बताता है कि पुरुषों और महिलाओं दोनों ने सभी क्षेत्रों में सेवा की और अच्छा काम किया। पुरुष की तरह ही एक महिला भी ईश्वर की पूजा करने और अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए बाध्य है। इसलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक महिला गवाही दे कि ईश्वर के अलावा कोई और पूजा के योग्य नहीं है, और मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) उनके पैगंबर हैं; प्रार्थना करे; दान दे; उपवास करे; और अगर उसके पास साधन और क्षमता है तो ईश्वर के घर की तीर्थ यात्रा करे। प्रत्येक महिला के लिए यह भी आवश्यक है कि ईश्वर और उसके दूतों, उसकी किताबों, उसके पैग़ंबरों, क़यामत के दिन पर विश्वास करे और ईश्वर के आदेश पर विश्वास करे। यह भी आवश्यक है कि हर महिला ईश्वर की पूजा ऐसे करें जैसे कि वह उन्हें देख रही है।
"और जो लोग अच्छा काम करेंगे, चाहे वो पुरुष हो या महिला, और ईश्वर के एक होने में विश्वास करेंगे, तो ऐसे लोग ही स्वर्ग में जायेंगे और उनके साथ जरा सी भी बेईमानी और जुल्म न होगा।" (क़ुरआन 4:124)
इस्लाम हालांकि मानता है कि समानता का मतलब यह नहीं है कि पुरुष और महिला समान हैं। इनके शरीर क्रिया विज्ञान, प्रकृति और स्वभाव में अंतर है। इसमें श्रेष्ठता या हीनता की बात नहीं है, बल्कि प्राकृतिक क्षमताओं और जीवन में अलग-अलग भूमिका निभाने की बात है। इस्लाम के कानून न्यायसंगत और निष्पक्ष हैं और इन पहलुओं को ध्यान में रखते हैं। पुरुषों को काम करने और अपने परिवार का भरण-पोषण करने का काम सौंपा गया है और महिलाओं को मातृत्व और घर संभालने का काम सौंपा गया है। इस्लाम हालांकि कहता है कि काम करने के ये नियम विशेष नहीं हैं और न ही कड़े हैं। महिलाएं काम कर सकती हैं या समाज की सेवा कर सकती हैं और पुरुष अपने बच्चों या अपने घर की जिम्मेदारी ले सकते हैं। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि यदि महिलाएं काम कर के पैसा कमाती हैं तो वह उनका अपना होता है, हालांकि एक पुरुष पूरे परिवार के लिए आर्थिक रूप से जिम्मेदार होता है।
9.मनुष्य पिछले कार्यों का पछतावा कर सकता है और सुधर सकता है
मुसलमानों का मानना है कि मनुष्य सुधर सकता है; और वे यह भी मानते हैं कि ऐसा करने में सफलता की संभावना विफलता की संभावना से अधिक है। और वे ऐसा इसलिए मानते हैं क्योंकि ईश्वर ने मानवजाति को सुधरने का मौका दिया है, एक बार नहीं बल्कि बार-बार क़यामत के दिन तक। ईश्वर ने प्रत्येक राष्ट्र में दूत और पैगंबर भेजे। कुछ हम क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद के जरिये जानते हैं, अन्य केवल ईश्वर को पता है।
"और प्रत्येक समुदाय या राष्ट्र के लिए एक दूत है; जब उनका दूत आएगा तो उनके बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला किया जाएगा, और उन पर कोई ज़ुल्म न होगा।” (क़ुरआन 10:47)
ईश्वर किसी व्यक्ति को तब तक जिम्मेदार नहीं ठहराता जब तक कि उसे स्पष्ट रूप से सही मार्ग न दिखाया गया हो।
"...और हम तब तक सज़ा नहीं देते जब तक कि हम एक दूत न भेज दें।”(क़ुरआन 17:15)
इसके साथ ही हम सत्य को खोजने के लिए जिम्मेदार हैं और सत्य मिल जाने पर हमें इसे स्वीकार करना चाहिए और इसके अनुसार अपने जीवन को सुधारना चाहिए। पिछले बुरे कार्यों को भूल जाना चाहिए। ऐसा कोई पाप नहीं जिसे क्षमा नही किया जा सकता!
"कह दो, 'ऐ मेरे बन्दो, जिन्होंने अपने आप पर ज्यादती की है, ईश्वर की दयालुता से निराश न हो। निस्संदेह ईश्वर सभी पापों को क्षमा कर देता है। निस्सन्देह वह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है'" (क़ुरआन 39:53)
एक व्यक्ति को अतीत के लिए ईमानदारी से पश्चाताप करके और यदि वह मुसलमान नहीं है तो उसे इस्लाम धर्म अपना के ईश्वर की दया का लाभ उठाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को आस्था, विश्वास और कर्म को मिलाकर अपने उद्धार के लिए कार्य करना चाहिए।
10.ईश्वर सुंदरता को उसके सभी रूपों में पसंद करता है
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "कोई भी स्वर्ग में नहीं जायेगा जिसके दिल में चींटी के वजन के बराबर घमंड होगा।" एक आदमी ने कहा, "क्या होगा अगर एक आदमी अच्छा दिखने के लिए अच्छे कपड़े और अच्छे जूते पहने?" उन्होंने कहा, "ईश्वर सुंदर हैं और सुंदरता को पसंद करता है। घमंड का मतलब है सच्चाई को नकारना और लोगों को नीचा दिखाना।" [1]
सुंदरता कुरूपता के विपरीत है। सृष्टि में मौजूद सुंदरता ईश्वर की सुंदरता के साथ-साथ उनकी शक्ति का भी प्रमाण है। जिसने सुंदरता बनाई वह सुंदरता का सबसे अधिक हकदार है। और वास्तव में स्वर्ग इतना सुंदर है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। ईश्वर सुंदर है और इसलिए स्वर्ग के सभी सुखों में सबसे बड़ा सुख ईश्वर के चेहरे को देखना है। ईश्वर कहता है,
"कितने ही चेहरे उस दिन प्रफुल्लित होंगे, अपने प्रभु की ओर देख रहे होंगे।" (क़ुरान 75:22-23)
वह अपने नामों को सबसे सुंदर बताता है:
“और सभी सुंदर नाम ईश्वर के हैं, उन्हें इन्हीं नामो से पुकारो…” (क़ुरआन 7:180)
प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान इब्न अल-क़य्यम, अल्लाह उन पर रहम करे, ने इस्लाम की सुंदरता के बारे में निम्नलिखित कहा था:
"ईश्वर की पहचान उसकी सुंदरता से होनी चाहिए जिसका किसी और से कोई मेल नहीं है, और उसकी पूजा उस सुंदरता से करनी चाहिए जैसे वह शब्दों, कर्मों और व्यवहार से प्यार करता है। वह अपने दासों से प्रेम करता है कि वे अपनी जीभ को सच्चाई से सुशोभित करें, अपने दिलों को सच्ची भक्ति, प्रेम, पश्चाताप और उस पर विश्वास से सुशोभित करें, अपने मन को उसकी आज्ञा से शांत करें; वह उनके कपड़ों में अपना आशीर्वाद दिखाकर उनके शरीर को सुशोभित करने के लिए प्यार करता है और किसी भी गंदगी या अशुद्धता से मुक्त रखकर, जिन बालों को हटाना है उन्हें हटाकर, खतना करके और नाखूनों को काटकर उनके शरीर को सुशोभित करने के लिए प्यार करता है। इस प्रकार वे सुंदरता के इन गुणों से ईश्वर को पहचानते हैं और सुंदर शब्दों, कर्मों और व्यवहार से उनके करीब जाने का प्रयास करते हैं। वे उन्हें उस सुंदरता के लिए स्वीकार करते हैं जो उनकी विशेषता है और वे उनकी पूजा उस सुंदरता के माध्यम से करते हैं जिसे उसने निर्धारित किया है और उनके धर्म के लिए।"[2]
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