आंतरिक शांति की खोज (4 का भाग 4): ईश्वर के प्रति समर्पण से आंतरिक शांति मिलती है
विवरण: मन की सच्ची शांति सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति समर्पण, उनके अनुसार जीवन जीने, उन्हें याद करने और परलोक के जीवन को इस जीवन से अधिक महत्त्व देने से मिलती है।
- द्वारा Dr. Bilal Philips (transcribed from an audio lecture by Aboo Uthmaan)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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हमें यह ध्यान रखना होगा कि जितना ईश्वर ने पहले से लिख दिया है उससे अधिक लोगों को इस दुनिया में नहीं मिलेगा। इधर-उधर भागने, देर रात तक जागते रहने, और अधिक काम करने से मनुष्य को केवल उतना ही मिलेगा जो ईश्वर ने उसके लिए पहले ही लिख दिया है। पैगंबर (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा:
"जो कोई परलोक को अपना लक्ष्य बनाता है, ईश्वर उसके कामों को आसान बना देता है, उसे धन देता (विश्वास का) है और दुनिया उसके कदमो में आ जाती है।" (इब्न माजा, इब्न हिब्बान)
ऐसा व्यक्ति दिल से अमीर होता है। अमीरी का मतलब बहुत ज्यादा दौलत होना नहीं है, बल्कि अमीरी का मतलब दिल की दौलत है, और दिल की दौलत क्या है? यह संतोष है, और जब कोई व्यक्ति खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित कर देता है तो इसी से शांति मिलती है, और यही इस्लाम है।
दिल से इस्लाम को स्वीकार करना और इस्लाम के सिद्धांतों के अनुसार जीना ही मन की शांति है। ईश्वर उस व्यक्ति को दिल से अमीर बना देगा और यह दुनिया उसके कदमो में आ जाएगी। ऐसे व्यक्ति को इसके लिए भागना नहीं पड़ेगा।
यह पैगंबर का वादा है उसके लिए जो व्यक्ति "पहली चीजें पहले" रखता है जो कि परलोक है। यदि हम स्वर्ग चाहते हैं तो यह हमारे जीवन में दिखना चाहिए, इस पर हमारा ध्यान होना चाहिए की हम किसे सबसे आगे रखते हैं।
तो हमें कैसे पता चलेगा कि हमारा ध्यान परलोक पर है? अगर हम किसी व्यक्ति के साथ बैठते हैं और सिर्फ नयी कारों, महंगे घरों, यात्रा और छुट्टियों और पैसे के बारे में बात करते हैं, और अगर हमारी अधिकांश बातचीत भौतिक चीजों के बारे में होती है या गपशप होती है, या हम इधर-उधर की बातें करते हैं तो इसका मतलब है कि हमारा ध्यान परलोक पर नही है। यदि परलोक पर हमारा ध्यान होता तो यह हमारी बातचीत में दिखता। यह एक बहुत ही बुनियादी स्तर है जिससे हम खुद को आंक सकते हैं, इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए, "हम अपना ज्यादातर समय किस बारे में बात करने में बिताते हैं"?
यदि हम पाते हैं कि हमारी प्राथमिकता यह दुनिया है, तो हमें फिर से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, हमें "पहली चीजें पहले" रखने की जरूरत है, जिसका अर्थ है इस दुनिया के बाद का जीवन यानी परलोक, और अगर हम ऐसा करते हैं तो हमें मन की शांति मिल सकती है, और ईश्वर ने हमें क़ुरआन में इसके बारे में बताया है, मन की शांति को पाने के लिए एक सटीक कदम उठाना, और ईश्वर कहता है:
"वास्तव में, ईश्वर को याद करने से दिलों को आराम मिलता है।" (क़ुरआन 13:28)
सिर्फ ईश्वर को याद करने से ही दिलों को आराम मिलता है। यह मन की शांति है। हम मुसलमान जो कुछ भी करते हैं उसमें ईश्वर की याद होती है। इस्लाम में ईश्वर को याद करते हुए जीवन जीना है, और ईश्वर कहता है:
"मुझे याद करने के लिए प्रार्थना करो (नमाज़ पढ़ो)..." (क़ुरआन 20:14)
हम मुसलमान जो कुछ भी करते हैं उसमें ईश्वर को याद करना शामिल होता है। ईश्वर कहता है:
"कहो, 'मेरी नमाज़, मेरी क़ुरबानी, मेरा जीना और मेरा मरना सब ईश्वर के लिए है, जो सारे संसार का ईश्वर है।'" (क़ुरआन 6:162)
तो मन की शांति प्राप्त करने का तरीका ये है, जीवन के सभी पहलुओं में ईश्वर को याद करो।
याद (ज़िक्र) करने का मतलब वो नहीं है जैसा कि कुछ लोग सोचते हैं, जैसे एक अंधेरे कमरे के कोने में बैठकर लगातार "अल्लाह, अल्लाह, अल्लाह ..." कहना। हम इस तरह ईश्वर को याद नहीं करते हैं। हां, बेशक वह व्यक्ति ईश्वर का नाम ले रहा है, लेकिन इसके बारे में सोचिये। अगर कोई आपके पास आता है (और मान लो आपका नाम मुहम्मद है) और वह सिर्फ "मुहम्मद, मुहम्मद, मुहम्मद..." कहता रहे तो आपको आश्चर्य होगा कि इसे क्या हो गया है। क्या इसे कुछ चाहिए? क्या इसे किसी चीज़ की जरुरत है? बिना बात किए सिर्फ नाम दोहराने का क्या उद्देश्य है?
यह ईश्वर को याद करने का तरीका नहीं है क्योंकि पैगंबर ने इस तरह से ईश्वर को याद नहीं किया और उनके ऐसा करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि हमें नाच-गाकर या झूम-झूम कर ईश्वर को याद करना चाहिए। यह ईश्वर को याद करने का तरीका नहीं है, क्योंकि पैगंबर ने इस तरह से भी ईश्वर को याद नहीं किया और उनके ऐसा करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
पैगंबर ने अपने जीवन में ईश्वर को याद किया। उनका जीवन ईश्वर की याद का जीवन था, उन्होंने ईश्वर की याद में जीवन जिया और यही सच्चा याद करना है, हमारी प्रार्थनाओं में और हमारे जीने और हमारे मरने में।
संक्षेप में, मन की शांति के लिए हमें अपने जीवन की समस्याओं को पहचानना होगा, अपनी बाधाओं को पहचानना होगा, यह स्वीकार करना होगा कि मन की शांति तभी मिलेगी जब हम इन बाधाओं की पहचानेंगे और समझेंगे कि इनमें से हम किसे बदल सकते हैं और उन बाधाओं पर ध्यान केंद्रित करें जो हमारी खुद की है और जिसे हम बदल सकते हैं।
यदि हम अपने आप को बदलेंगे तो ईश्वर भी हमारे आसपास की दुनिया को बदल देंगे और हमें अपने आसपास की दुनिया से निपटने का साधन देंगे। भले ही दुनिया उथल-पुथल से भरी हुई है, लेकिन ईश्वर हमें इसमें भी मन की शांति देते हैं।
जो कुछ भी होता है हम जानते हैं कि यह ईश्वर की ओर से नियति है और परीक्षा की घड़ी है और हम जानते हैं कि अंततः यह हमारे अच्छे के लिए है और इसमें अच्छाई छुपी हुई है। ईश्वर ने हमें इस दुनिया में पैदा किया है और इस दुनिया को स्वर्ग प्राप्त करने का जरिया बनाया है और इस दुनिया की परीक्षा की घड़ी हमारे अपने आध्यात्म की वृद्धि के लिए है। यदि हम यह सब स्वीकार कर सकते हैं और ईश्वर को दिल से स्वीकार कर सकते हैं तो हमें मन की शांति मिल सकती है।
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