इस्लामी एकेश्वरवाद
विवरण: इस्लामी अवधारणा में एकेश्वरवाद की व्याख्या, जो ईश्वर की विशिष्टता, उसकी पूजा के अधिकार और उसके नाम और विशेषताओं पर विश्वास करने पर जोर देता है।
- द्वारा islamtoday.net
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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एकेश्वरवाद वह संदेश है जिसे सभी पैगंबरो ने बताया। फिर लोग सच्चाई से भटक गए। फिर पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) अंतिम दूत के रूप में आए और मानवता के लिए सच्चे एकेश्वरवाद को फिर से स्थापित किया। नीचे इस्लाम में एकेश्वरवाद का विस्तृत विवरण दिया गया है।
इस्लाम में एकेश्वरवाद
एकेश्वरवाद (अरबी में तौहीद) की अवधारणा इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा है। इस्लाम में सब कुछ इसी पर बना है। इस्लाम ईश्वर की पूर्ण अखंडता का आह्वान करता है। पूजा या भक्ति के किसी भी कार्य का कोई अर्थ या मूल्य नहीं होता यदि इस अवधारणा से किसी भी तरह से समझौता किया जाये।
एकेश्वरवाद को निम्नलिखित तीन दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है:
1.ईश्वर की उसके प्रभुत्व में अखंडता
2.सभी पूजा सिर्फ ईश्वर के लिए समर्पित
3.ईश्वर की उनके नामों और विशेषताओं में अखंडता
इन तीनों दृष्टिकोणों को इस प्रकार विस्तार से बताया जा सकता है:
ईश्वर की उसके प्रभुत्व में अखंडता
ईश्वर की उसके प्रभुत्व में अखंडता का अर्थ है कि ईश्वर का ब्रह्मांड पर हर तरह से पूर्ण अधिकार है। वह अकेला ही सभी चीजों का निर्माता है। वह अकेला ही सब कुछ करता है। वह सर्वशक्तिमान है। उसके प्रभुत्व में कोई हिस्सेदार नही है। उसके आदेशों का कोई विरोध नही कर सकता।
यह वो अवधारणा है जिससे पृथ्वी पर अधिकांश लोग सहमत होंगे। अधिकांश लोग मानते हैं कि ब्रह्मांड का निर्माता एक है और उसका कोई साथी नहीं है।
सभी पूजा सिर्फ ईश्वर के लिए समर्पित
ईश्वर (अल्लाह) के सिवा कोई भी पूजा के लायक नही है। यह अवधारणा एक वो केंद्रीय विचार है जिसे सभी पैगंबरो ने हर युग में बताया था। यह इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण आस्था है। इस्लाम का उद्देश्य है कि लोग सृजित प्राणी की पूजा छोड़ दें और सिर्फ सृष्टिकर्ता की पूजा करें।
यह वो अवधारणा है जहां इस्लाम अन्य धर्मों से बहुत अलग है। हालांकि अधिकांश धर्म सिखाते हैं कि एक सर्वोच्च शक्ति है जिसने वो सब कुछ बनाया है जो अस्तित्व मे है, लेकिन पूजा के मामले में वे किसी न किसी तरह बहुदेववाद में लिप्त हैं। ये धर्म या तो अपने अनुयायियों को ईश्वर (अल्लाह) के अलावा अन्य प्राणियों की पूजा करने के लिए कहते हैं, हालांकि आमतौर पर इन अन्य देवताओं को सर्वोच्च स्तर से निचले स्तर का माना जाता है, या वे अपने अनुयायिओं को कहते हैं कि ये अन्य प्राणि उनके और ईश्वर के बीच मध्यस्थ हैं।
आदम से लेकर मुहम्मद तक (इन सभी पर ईश्वर की दया और कृपा बनी रहे) सभी पैगंबरो और दूतों ने लोगों को सिर्फ एक ईश्वर की पूजा करने के लिए कहा। यह सबसे शुद्ध, सरल, और स्वाभाविक आस्था है। इस्लाम सांस्कृतिक मानवशास्त्रियों की इस धारणा को खारिज करता है कि मनुष्य का प्रारंभिक धर्म बहुदेववाद था, और फिर धीरे-धीरे उसी से एकेश्वरवाद का विचार विकसित हुआ।
बल्कि सच्चाई तो यह है कि मानवता का नैसर्गिक धर्म केवल एक ईश्वर की पूजा करना है। बाद में लोगों ने इस धर्म को भ्रष्ट कर दिया, और इसमें अन्य प्राणियों की पूजा को जोड़ दिया। ऐसा लगता है कि लोगों में अपनी भक्ति को किसी मूर्त, किसी कल्पनाशील चीज़ पर केंद्रित करने की प्रवृत्ति है, भले ही उन्हें ये पता है कि ब्रह्मांड का निर्माता उनकी कल्पनाओं से परे है। पूरे मानव इतिहास मे ईश्वर ने पैगंबर और संदेशवाहक भेजे ताकि लोग फिर से एक सच्चे ईश्वर की पूजा करना शुरू कर दें, लेकिन लोग हर बार सृजित प्राणियों की पूजा करने में लग गया।
ईश्वर ने मनुष्य को केवल उसकी पूजा करने के लिए बनाया है। सबसे बड़ा पाप ईश्वर (अल्लाह) के सिवा किसी और की पूजा करना है। यदि उपासक किसी अन्य प्राणी की भक्ति करके ईश्वर के नजदीक जाना चाहता है तो यह भी बड़ा पाप है। ईश्वर को मध्यस्थों या बिचौलियों की आवश्यकता नहीं है। वह हमारी सभी प्रार्थनाओं को सुनता है और जो कुछ भी होता है उसे उसका पूरा ज्ञान है।
और तो और ईश्वर को हमारी पूजा की भी जरूरत नही है। वह सभी चीजों मे पूरी तरह स्वतंत्र है। यदि संसार के सभी व्यक्ति इकट्ठे होकर भी सिर्फ एक ईश्वर की पूजा करें तो भी ईश्वर को कोई लाभ नहीं होगा। वे ईश्वर के प्रभुत्व में एक कण जितना भार भी नही जोड़ पाएंगे। इसके विपरीत, यदि सारी सृष्टि ईश्वर की पूजा करना बंद कर दे तो भी इससे ईश्वर के प्रभुत्व पर कोई असर नही पड़ेगा। ईश्वर की पूजा करके हम सिर्फ अपनी आत्मा को लाभ पहुंचाते हैं और जिस उद्देश्य के लिए हमें बनाया गया है उसे पूरा करते हैं। हम ईश्वर की किसी भी जरूरत को पूरा नहीं करते हैं। ईश्वर किसी भी जरुरत से मुक्त है।
ईश्वर की उनके नामों और विशेषताओं में अखंडता
ईश्वर (अल्लाह) की उनके नामों और विशेषताओं में अखंडता का अर्थ है कि ईश्वर सृजित प्राणियों की विशेषताओं को साझा नहीं करता है, और न ही ये ईश्वर की विशेषताओं को साझा करते हैं। ईश्वर हर तरह से अद्वितीय है। मुसलमान उन सभी विशेषताओं में विश्वास करते हैं जो ईश्वर ने स्वयं के लिए बताया है और उनके पैगंबर ने ईश्वर के लिए बताया है, इस समझ के साथ कि ये विशेषताएं सृजित चीजों की विशेषताओं के समान नही है। इसी तरह, हम ईश्वर के उन सभी नाम या विशेषता को अस्वीकार करते हैं जिसे ईश्वर और उसके दूत ने उनके लिए अस्वीकार किया है।
ईश्वर की सभी विशेषताएं उत्तम और पूर्ण हैं। मानवीय कमियों को ईश्वर से जोड़ के नही देखा जा सकता। ईश्वर में कोई कमी या दोष नही है।
सृजित वस्तुओं की विषेशताओं का ईश्वर से सबंध बताना बहुदेववाद का एक रूप है। इसी तरह ईश्वर की विषेशताओं का सृजित वस्तुओं से सबंध बताना भी बहुदेववाद का एक रूप है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति यह मानता है कि कोई अन्य प्राणी सर्वज्ञ या सर्वशक्तिमान है, उसने बहुदेववाद का पाप किया है, जो इस्लाम में सभी पापों में सबसे बड़ा पाप है।
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