आंतरिक शांति की खोज (4 का भाग 3): जीवन में सब्र और लक्ष्य

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:
A- A A+

विवरण: इस अशांत दुनिया में सब्र और इस जीवन को अपना अंतिम उद्देश्य न बनाना हमारे नियंत्रण में आने वाली बाधाओं को हल करने का मुख्य समाधान हैं।

  • द्वारा Dr. Bilal Philips (transcribed from an audio lecture by Aboo Uthmaan)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
  • मुद्रित: 0
  • देखा गया: 9,028 (दैनिक औसत: 8)
  • रेटिंग: अभी तक नहीं
  • द्वारा रेटेड: 0
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0
खराब श्रेष्ठ

The_Search_for_Inner_Peace_(part_3_of_4)_001.jpgमूसा और खिजर की कहानी पर वापस चलते हैं, नदी पार करने के बाद वे एक बच्चे के पास गए, और खिजर ने जानबूझकर उस बच्चे को मार डाला। मूसा ने खिजर से पूछा कि वह ऐसा कैसे कर सकते है? बच्चा मासूम था और खिजर ने उसे मार डाला! खिजर ने मूसा से कहा कि बच्चे के माता-पिता धार्मिक हैं और यदि यह बच्चा बड़ा हो जाता (ईश्वर जानता है) तो वह अपने माता-पिता के लिए खतरा बन जाता और वह उन्हें नास्तिक बना देता, इसलिए ईश्वर ने बच्चे की मृत्यु का आदेश दिया।

बेशक माता-पिता दुखी थे जब उन्होंने अपने बच्चे को मृत पाया। हलांकि, ईश्वर ने उस बच्चे की जगह एक ऐसा बच्चा दिया जो धार्मिक और उनके लिए बेहतर था। इस बच्चे ने उनका सम्मान किया और वह उनके साथ और उनके लिए अच्छा था, लेकिन अपने पहले बच्चे को खोने का गम हमेशा माता-पिता के दिल में रहेगा, क़यामत के दिन तक जब वे ईश्वर के सामने खड़े होंगे, और ईश्वर उन्हें बताएगा कि क्यों उन्होंने उनके पहले बच्चे की मृत्यु का आदेश दिया था और फिर वे समझ जायेगें और ईश्वर की स्तुति करेंगे।

तो यह हमारे जीवन का स्वभाव है। कुछ ऐसी चीजें हैं जो स्पष्ट रूप से नकारात्मक होती हैं, ऐसी चीजें जो हमें हमारे जीवन में मन की शांति के लिए बाधा लगती हैं क्योंकि हम उन्हें नहीं समझ पाते या ये नहीं समझ पाते की ये हमारे साथ क्यों हो रहा है, लेकिन हमें उन्हें भूलना होगा।

ये ईश्वर की ओर से होती हैं और हमें विश्वास करना होगा कि अंततः उनके पीछे कुछ अच्छाई है, चाहे हम उसे देख पाएं या नहीं। अब हम उन चीजों की बात करते हैं जिन्हें हम बदल सकते हैं। पहले हमें उनकी पहचान करनी होगी, फिर हमें दूसरा बड़ा कदम उठाना है जिसमें हमें ऐसी बाधाओं को दूर करने का समाधान ढूंढना होगा। ऐसी बाधाओं को दूर करने के लिए हमें खुद को बदलना होगा और ऐसा इसलिए क्योंकि ईश्वर कहते हैं:

"वास्तव में! ईश्वर किसी व्यक्ति की अच्छी स्थिति को तब तक नहीं बदलता जब तक कि वे अपने भीतर की अच्छी स्थिति को खुद नहीं बदलते…” (क़ुरआन 13:11)

यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर हमारा नियंत्रण है। यहां तक कि हम सब्र को विकसित कर सकते हैं, हालांकि सामान्य विचार यह है कि कुछ लोग जन्म से ही सहनशील होते हैं।

एक आदमी पैगंबर (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) के पास आया, अपना नाम बताया और पूछा कि स्वर्ग जाने के लिए उसे क्या करना होगा? पैगंबर ने उससे कहा: "क्रोध मत करो।" (सहीह अल बुखारी)

वह व्यक्ति एक ऐसा व्यक्ति था जो जल्दी ही क्रोधित हो जाता था, इसलिए पैगंबर ने उससे कहा कि उसे अपने क्रोधी स्वभाव को बदलना होगा। तो अपने आप को और अपने चरित्र को बदला जा सकता है।

पैगंबर ने यह भी कहा: "जो कोई सब्र रखने का दिखावा करेगा (सब्र रखने की इच्छा के साथ) ईश्वर उसे सब्र देगा।"

यह सहीह अल बुखारी में लिखा है। इसका मतलब यह है कि बेशक कुछ लोग जन्म से ही सहनशील होते हैं, लेकिन हम में से बाकी लोग सब्र रखना सीख सकते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि पश्चिमी मनोरोग और मनोविज्ञान में पहले कहते थे कि इसे (सब्र को) अपनी छाती से उतार दो, इसे मत रखो क्योंकि अगर हमने इसे रखा तो यह फुट जायेगा, इसलिए बेहतर है कि इसे बाहर निकाल दो।

बाद में उन्हें पता चला कि जब लोग इसे बाहर निकालते हैं तो उनके मस्तिष्क में छोटी रक्त वाहिकाएं फट जाती हैं क्योंकि वे बहुत गुस्से में होते हैं। उन्हें लगता है कि यह वास्तव में खतरनाक है और संभावित रूप से इसे बाहर निकालना हानिकारक है। इसलिए अब वे कहते हैं कि बेहतर है कि इसे बाहर न निकालें।

पैगंबर ने हमें सब्र रखने के लिए कहा, इसलिए बाहरी रूप से हमें सब्र रखना चाहिए, भले ही हम अंदर से कितने ही क्रोधित क्यों न हों। और हमें लोगों को धोखा देने के लिए बाहरी रूप से सब्र नहीं रखना चाहिए; बल्कि, हमें सब्र इसलिए रखना चाहिए ताकि हम सहनशील बन सकें। यदि हम लगातार ऐसा करते हैं तो बाहरी सब्र अंदरी सब्र बन जाता है जिसके परिणामस्वरूप हम पूर्ण रूप से सहनशील बन जाते हैं और जैसा कि ऊपर हदीस में बताया गया है हम ये कर सकते हैं।

इन तरीकों में से यह देखना है कि कैसे हमारे जीवन के ये भौतिक तत्व हमें सहनशील बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

पैगंबर ने हमें इन तत्वों से निपटने के लिए ये सलाह दी:

"अपने से ऊपर वालों को मत देखो जो ज्यादा भाग्यशाली हैं, बल्कि अपने से नीचे वालों को देखो जो कम भाग्यशाली हैं..."

ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी स्थिति चाहे कैसी भी हो, हमेशा ऐसे लोग होते हैं जो हमसे भी बुरी स्थिति मे होते हैं। भौतिक जीवन के बारे में यह हमारी सामान्य रणनीति होनी चाहिए। आजकल भौतिक जीवन हमारे जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, हम इसके प्रति जुनूनी होते हैं; इस दुनिया में हम जो कुछ भी कर सकते हैं उसे हासिल करना हमारा मुख्य मकसद होता है, जिस पर हम में से अधिकांश अपनी ऊर्जा लगाते हैं। यदि कोई ऐसा करता भी है तो उसे अपनी मन की शांति को प्रभावित नहीं होने देना चाहिए।

भौतिक जीवन के लिए काम करते समय हमें उन पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए जो हमसे बेहतर हैं अन्यथा हमारे पास जो कुछ है उससे हम कभी संतुष्ट नहीं होंगे। पैगंबर ने कहा:

"यदि तुम मनुष्य को सोने की एक घाटी दे दो तो वह दूसरी घाटी चाहेगा।" (सहीह मुस्लिम)

कहावत है कि घास हमेशा दूसरी तरफ हरी होती है; और एक व्यक्ति के पास जितना अधिक होता है वह व्यक्ति उतना ही अधिक और चाहता है। अगर हम इस भौतिक दुनिया में ऐसे जीते हैं तो हम कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकते; बल्कि हमें उन लोगों को देखना चाहिए जो हमसे भी कम भाग्यशाली हैं, इस तरह हम उन उपहारों, लाभों और दया को याद रखेंगे जो ईश्वर ने हमें दिया है, चाहे वह कितना भी कम क्यों न हो।

पैगंबर मुहम्मद की एक और कहावत है जो हमें भौतिक दुनिया के दायरे में हमारे मामलों को उनके उचित परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद करती है, और स्टीफन कोवे[1] का सिद्धांत "पहली चीजें पहले" इसका एक उदाहरण है। पैगंबर ने इस सिद्धांत को 1400 साल पहले बताया था और विश्वासियों के लिए इस सिद्धांत को यह कहकर निर्धारित किया था:

"जो कोई भी इस दुनिया को अपना लक्ष्य बनाएगा, ईश्वर उसके कामों को मुश्किल बना देगा और गरीबी उसकी आंखों के सामने रखेगा और वह इस दुनिया से कुछ भी हासिल नहीं कर पाएगा, सिवाय इसके कि ईश्वर ने जो उसके लिए पहले से ही लिख रखा है ..." (इब्न माजा, इब्न हिब्बान)

इसलिए मनुष्य अगर इस दुनिया को अपना लक्ष्य बनाएगा तो उसके काम नही बनेगें, वह सर कटे मुर्गे की तरह सब जगह घूमेगा, पागलों की तरह। ईश्वर गरीबी उसकी आंखों के सामने रखेगा और उसके पास चाहे कितना भी पैसा हो वह गरीब महसूस करेगा। हर बार जब कोई उसके साथ अच्छा व्यवहार करेगा या उसे देख कर मुस्कुराएगा तो उसे लगेगा कि वे ऐसा केवल उसके रुपयों के लिए कर रहे हैं, वह किसी पर भरोसा नहीं कर पायेगा और खुश नहीं रहेगा।

जब शेयर बाजार में गिरावट आती है तो आप पढ़ते हैं कि इसमें निवेश करने वालों में से कुछ ने आत्महत्या कर ली। एक व्यक्ति के पास 8 मिलियन होते हैं और बाजार में गिरावट के कारण उसे 5 मिलियन का नुकसान होता है और उसके पास 3 मिलियन बचते हैं, लेकिन 5 मिलियन का नुकसान उसे ऐसा लगता है जैसे उसकी दुनिया खत्म हो गई हो। इसके बाद उसे जीने की कोई इच्छा नहीं रहती, क्योंकि ईश्वर ने उसकी आंखों के सामने गरीबी डाल दी होती है।



फुटनोट:

[1] स्टीफन कोवे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मानित लीडरशिप अथॉरिटी हैं और कोवे लीडरशिप सेंटर के संस्थापक हैं। उन्होंने M.B. किया हुआ है।

खराब श्रेष्ठ

इस लेख के भाग

सभी भागो को एक साथ देखें

टिप्पणी करें

  • (जनता को नहीं दिखाया गया)

  • आपकी टिप्पणी की समीक्षा की जाएगी और 24 घंटे के अंदर इसे प्रकाशित किया जाना चाहिए।

    तारांकित (*) स्थान भरना आवश्यक है।

इसी श्रेणी के अन्य लेख

सर्वाधिक देखा गया

प्रतिदिन
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
कुल
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

संपादक की पसंद

(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सूची सामग्री

आपके अंतिम बार देखने के बाद से
यह सूची अभी खाली है।
सभी तिथि अनुसार
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सबसे लोकप्रिय

सर्वाधिक रेटिंग दिया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
सर्वाधिक ईमेल किया गया
सर्वाधिक प्रिंट किया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
इस पर सर्वाधिक टिप्पणी की गई
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

आपका पसंदीदा

आपकी पसंदीदा सूची खाली है। आप लेख टूल का उपयोग करके इस सूची में लेख डाल सकते हैं।

आपका इतिहास

(और अधिक पढ़ें...) हटाएं
Minimize chat