यहोवा के साक्षी कौन हैं? (भाग 3 का 1): इसाई या किसी धर्म-विशेष के सदस्य?
विवरण: यहोवा के साक्षियों का इतिहास।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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2011 में यह अनुमान लगाया गया था कि 200 से अधिक देशों में 1 लाख 9 हज़ार से अधिक धार्मिक समूहों में करीब 76 लाख से अधिक यहोवा के साक्षी मौजूद थे।[1] जैसा कि नाम से पता चलता है, यह ईसाई धर्म से जुड़ा हुआ है। इसके सदस्य, जो कि पुरुष एवं महिला और सभी उम्र के होते हैं, सक्रिय रूप से लोगों के घर-घर जाते हैं और अपने समुदायों में लोगों के साथ बाइबल के अपने संस्करण को साझा करने का प्रयास करते हैं।आपने उन्हें अपने समुदाय में उन्हें देखा होगा; आम तौर पर ये छोटे परिवारिक समूह होते हैं, सभी शालीनता भरे कपड़े पहनते हैं। वे दरवाज़े पर दस्तक देते हैं या घंटियां बजाते हैं और साहित्य बांटते हैं और आपको जीवन के बड़े सवालों पर विचार करने के लिए आमंत्रित करते हैं, जैसे कि, आप बीमारी और गरीबी के बगैर दुनिया में कैसे रहना चाहेंगे? यहोवा के साक्षियों को धर्मांतरण करने वाले मॉर्मन के साथ जोड़कर भ्रमित नहीं होना चाहिए, वे आमतौर पर युवा पुरुषों के जोड़े होते हैं जो काले सूट पहने होते हैं। 2012 तक यहोवा के साक्षी इस प्रकार की धर्म प्रचार संबंधी गतिविधियों में करीब 1.7 अरब घंटे बिता चुके थे और 70 करोड़ से अधिक पत्रिका एवं किताबें वितरित कर चुके थे।[2]
यहोवा के साक्षी इस पृथ्वी पर ऐसी चीज़ के साथ असहयोग की शिक्षा देते हैं जिन्हें वे शैतान की शक्ति के रूप में देखते हैं, और यह, किसी भी झंडे को सलामी देने या युद्ध के किसी भी प्रयास में सहायता करने से इनकार करने की शिक्षा होती है, जिसके चलते पड़ोसियों और सरकारों के साथ उन्हें संघर्ष करना पड़ा और इसने उन्हें कई देशों में काफी अलोकप्रिय बना दिया है। ख़ासतौर से उत्तरी अमेरिका और पूरे यूरोप में 1936 में समस्त अमरीका में मौजूद यहोवा के साक्षी बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया और अक्सर उन्हें अनाथालय में रखा गया।दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहोवा के साक्षियों पर भारी ज़ुल्म ढाए गए। नाज़ी दौर के जर्मनी में उनपर बेहद ज़ुल्म ढाहे गए और हज़ारों लोग बंदी शिविरों में मारे गए। 1940 में कनाडा में और 1941 में ऑस्ट्रेलिया में धर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ सदस्यों को जेल में डाल दिया गया और अन्य को श्रमिक शिविरों में भेज दिया गया। धर्म विरोधियों ने दावा किया कि साक्षियों ने इस सिद्धांत को साबित करने के लिए शहादत का जानबूझकर रास्ता चुना, जिसमें दावा किया गया था कि जो लोग ईश्वर को खुश करने के लिए संघर्ष करते हैं उन्हें सताया जाएगा[3]।
हालांकि वे किसी संकीर्ण या गुप्त धर्म का हिस्सा नहीं हैं, हम में से बहुत से लोग यहोवा के साक्षियों के बारे में बहुत कम जानते हैं। वे दरअसल खुद को 1870 में अमेरिका के पेंसिल्वेनिया से अपनी उत्पत्ति को जोड़ते हैं, जब चार्ल्स टेज़ रसेल (1852-1916) ने एक बाइबल अध्ययन समूह का आयोजन किया था। इस समूह के गहन पाठ, सदस्यों को कई पारंपरिक ईसाई मान्यताओं को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित करते हैं। 1880 तक, सात अमेरिकी राज्यों में 30 धार्मिक समूह बन चुके थे। इन समूहों को वॉच टावर और बाद में वॉचटावर बाइबल एंड ट्रैक्ट सोसाइटी के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में रसेल ने अपना मुख्यालय ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में स्थानांतरित कर दिया जहां यह आज भी वह मौजूद है। 1931 में जोसफ फ्रैंकलिन रदरफोर्ड के नेतृत्व में इस समूह का नाम "यहोवा के साक्षी" के रूप में रखा गया।
यहोवा यहूदी धर्मग्रंथों में मौजूद ईश्वर के नाम का अंग्रेजी अनुवाद है और रदरफोर्ड ने इस नाम को बाइबल के एक अंश, यशायाह 43:10 से लिया है। यहोवा की साक्षी बाइबल, जिसे न्यू वर्ल्ड ट्रांसलेशन के नाम से जाना जाता है, इस मार्ग का अनुवाद इस प्रकार से करती है, “‘तुम मेरे गवाह हो,’ यहोवा का कथन है, ‘यहां तक कि मेरा सेवक जिसे मैंने चुना है. . . ,’”। यहोवा के साक्षी 19वीं सदी की पेन्सिलवेनिया से एक छोटी सी शुरुआत को लेकर आगे बढ़ते हुए 21वीं सदी में आकर एक वैश्विक संगठन बन गए हैं जो वॉच टावर सोसाइटी के बहुराष्ट्रीय संचालनों के द्वारा समर्थित हैं। इस मुहिम से संबंधित पत्रिकाओं, पुस्तकों और पैम्फलेटों के प्रकाशन और वितरण पर सोसायटी की दृढ़ता को तकनीकी नवाचारों का भी लाभ प्राप्त हुआ[4]। इसके बावजूद दुनिया भर में यहोवा के साक्षियों को बदनाम किया जा रहा है और सताया जा रहा है।
गैर ईसाई यह मानते हैं कि यहोवा के साक्षी ईसाई धर्म का ही एक अलग हिस्सा है और यहोवा के साक्षी स्वयं को एक ईसाई संप्रदाय कहते हैं, हालांकि दुनिया भर के कई ईसाई इस बात से असहमति जताते हैं। कुछ लोग तो इतने आवेगपूर्ण रूप से असहमति जताते हैं कि कई देशों में सरकारी नीति बनाकर यहोवा के साक्षियों को प्रताड़ित करना शुरू किया गया है। कनाडा के संगठन “रिलिजियस टॉलरेंस” को यहोवा के साक्षी के संदर्भ में ईसाई शब्द के प्रयोग पर आपत्ति जताने वाले इतने ईमेल प्राप्त होते हैं कि उनकी वेब साइट पर एक चेतावनी तक जारी किया गया है। “कृपया हमें अपमानजनक ईमेल न भेजें... यह वेबसाइट किसी भी प्रकार से आधिकारिक तौर पर यहोवा की साक्षी को नहीं दर्शाता है।” इस समूह, धर्म, संप्रदाय या गुट से जुड़ी ऐसी क्या बात है जो लोगों को नाराज करती है?
उन्हीं की शब्दों में कहें तो, यहोवा के साक्षी खुद को एक प्रकार के विश्वव्यापी भाईचारे के रूप में देखते हैं जो किसी राष्ट्रीय सीमा तथा किसी राष्ट्रीय एवं जातीय निष्ठा से परे है। उनका मानना है कि चूंकि ईसा मसीह ने घोषणा की थी कि इस दुनिया का कोई भी प्रांत उनका राज्य नहीं है और उन्होंने एक अस्थायी ताज को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, इसीलिए लोगों को भी दुनियादारी से अलग रहना चाहिए और राजनीतिक भागीदारी से बचना चाहिए।[5]
यहोवा के साक्षियों की मान्यताओं का एक बहुत ही संक्षिप्त अवलोकन एक ऐसे समूह की तस्वीर को चित्रित करता हुआ प्रतीत होता है जो इस्लाम के समान मान्यता रखता है। वे एक ईश्वर में विश्वास करते हैं और स्पष्ट रूप से त्रित्व (ट्रिनिटी) के सिद्धांत के विरोधी हैं। समलैंगिकता एक गंभीर पाप है, उनके बीच लिंग भूमिकाओं को बेहद स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है, वे मूर्तिपूजक मान्यताओं से पैदा होने वाले उत्सवों से बचते हैं, और वे उन सभी प्रकार के सरकारों के प्रति निष्ठा रखने का विरोध करते हैं जो ईश्वर के बताए नियमों पर आधारित नहीं है।तो क्या यह इस्लाम है? क्योंकि इस दृष्टिकोण से देखें तो यह निश्चित रूप से ईसाई धर्म तो नहीं नज़र आता है जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है।
अगर हम यहूदियों की मान्यताओं पर थोड़ा गहराई से गौर करते हैं तो हम पाते हैं कि प्रारंभिक मामलों के एक समान होने के बावजूद इस्लाम के साथ उनके बीच बहुत कम समानताएं मौजूद हैं, सिवाय इसके कि ये दोनों ही एक ऐसा धर्म है जो अपने सदस्यों से एक बड़ी प्रतिबद्धता की अपेक्षा करता है। उनकी मान्यताओं के पीछे मौजूद ज़बरन तर्क करने की आदत इस संसार की अवधारणाओं के प्रति उनकी त्रुटिपूर्ण समझ को दर्शाता है जिसे मुसलमान अच्छे से जानते हैं। उनकी मान्यताओं में भी “एंड टाइम्स या एंड ऑफ डेज़” (क़यामत) के बारे में बहुत सी जानकारी मौजूद है। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि दुनिया का अंत जैसा कि हम जानते हैं कि काफी निकट था, हालांकि ये तारीखें आकर चली भी गई और एक चौंकाने वाला घटना तक नहीं घटा।
भाग 2 में हम यहोवा के साक्षियों की अंत समय (क़यामत) के सिद्धांतों और तारीखों पर गहराई से विचार करेंगे, फिर हम इसकी तुलना बाइबल और इस्लाम में मौजूद एंड ऑफ डेज़ (क़यामत) की मान्यताओं से करेंगे। हम उन मान्यताओं पर भी गौर करेंगे जो इस्लाम की मान्यता से मिलती-जुलती प्रतीत होती हैं और उन अवधारणाओं पर प्रकाश डालती है जो प्रमुख रूप से ईसाइयों और मुसलमानों दोनों के लिए अस्वीकार्य हैं।
फुटनोट:
[1] (http://www.watchtower.org/e/statistics/worldwide_report.htm)
[2] (http://www.religioustolerance.org/witness.htm)
[3] बारबरा ग्रिज़ुटी हैरिसन, विज़न ऑफ़ ग्लोरी, 1978, चैप्टर 6.
[4]http://www.patheos.com/Library/Jehovahs-Witnesses/Historical-Development.html
[5] जीन ओवेंस; नीमेन रिपोर्ट्स, फॉल 1997. (http://www.bbc.co.uk/religion/religions/witnesses/beliefs/beliefs.shtml)
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