इस्लाम में पूजा में रियायतें

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विवरण: किस तरह ईश्वर और उनके पैगंबर ने स्वर्ग के मार्ग को आसान बना दिया है।

  • द्वारा Aisha Stacey (© 2019 IslamReligion.com)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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Concession in Worship.jpgइस्लाम का पंथ एक धर्म से कहीं बढ़कर है; यह जीवन जीने का एक तरीका है। हमारे दैनिक जीवन का कोई भी ऐसा पहलू नही है जिसे इस्लाम मे न बताया गया हो। क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) की परंपराएं हमें सिखाती है कि कैसे अपना जीवन सर्वश्रेष्ठ तरीके से जीना है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि ये हमें इस्लाम के पांच स्तंभों और अपने सभी कार्यों द्वारा ईश्वर की पूजा करना सिखाते हैं। इस प्रकार, वह लोग जिन्होंने इस्लामी पंथ की सतह को जाना है वो समझ सकते हैं कि इस्लाम नियमों और कानूनों का धर्म है, जैसे यह करना है और यह नही करना है। हालांकि, सच्चाई से दूर कुछ नहीं हो सकता है।

इस्लाम सबके लिए बनाया गया है, उनके लिए भी जिनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता चरम पर है, और उनके लिए भी जिनके जीवन के कुछ पहलु मुश्किल भरे हैं। वास्तव में, जो लोग जीवन की भागदौड़ का सामना नहीं कर सकते, वे इस्लाम को तनाव मुक्त पाते हैं। इस्लाम के दिशा-निर्देश, क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की परंपराएं, आराम देने और जीवन को आसान बनाने के लिए बनाये गए हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्लामी कानून मानवजाति को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया गया हैं, और पैगंबर मुहम्मद और उनके सभी कार्य और सीख मानवजाति के लिए एक दया है।

"...ईश्वर तुम्हारे लिए सुविधा चाहता है और असुविधा नही चाहता..." (क़ुरआन 2:185)

पैगंबर मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को खुद के प्रति और नए परिवर्तित विश्वासियों के प्रति सहज होने की सलाह दी। उन्होंने कहा, "धर्म बहुत आसान है और जो कोई अपने धर्म में खुद पर अधिक बोझ डालता है वह इस तरह आगे नहीं बढ़ सकता।"[1] और "लोगों के साथ सहज व्यवहार करें और उन पर कठोर न हों; उन्हें खुशखबरी दें और उन्हें घृणा से न भरें।''

ईश्वर चाहता है कि हम उसकी पूजा करें और उसके दिशानिर्देशों का पालन करें, लेकिन वह नहीं चाहता कि हम पर अधिक बोझ पड़े। वह चाहता है कि स्वर्ग का रास्ता आसान हो, और इसके लिए इस्लाम में एक सिद्धांत है जो कहता है कि कठिनाई के साथ रियायत है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई मुश्किल में है तो इस्लाम के कानून उसे रियायत देते हैं। आमतौर पर चोट, बीमारी, बुढ़ापा और यात्रा से जुड़ी परिस्थितियों में रियायत दी जाती है।

वुज़ू और प्रार्थना में रियायतें

बीमार लोगों की प्रार्थना मे ईश्वर की रियायत एक उत्कृष्ट उदाहरण देखा जा सकता है जिसमें ईश्वर ने आस्तिकों की सहायता के लिए रियायत दी है। जब कोई बीमार व्यक्ति खड़े होकर प्रार्थना करने मे असमर्थ है, तो वह बैठकर प्रार्थना कर सकता है। यदि वह बैठकर प्रार्थना करने मे असमर्थ है, तो वह लेटकर एक तरफ करवट लेकर प्रार्थना कर सकता है। यदि वह करवट लेकर प्रार्थना करने मे असमर्थ है, तो वह अपनी पीठ के बल लेटकर प्रार्थना कर सकता है। इन रियायतों से यह स्पष्ट होता है कि ईश्वर किसी व्यक्ति पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालता।

हर मुसलमान को प्रार्थना से पहले वुज़ू करना चाहिए। इस मामले में भी ईश्वर ने बीमार या घायल लोगों को रियायत दी है। यदि व्यक्ति पानी का उपयोग करने मे असमर्थ है, या यदि पानी के उपयोग से उसकी सुरक्षा या ठीक होने मे परेशानी होगी, तो वह साफ़ मिट्टी पर हांथ रख के और फिर चेहरे और हाथों को पोंछकर सूखी वुज़ू कर सकता है।

बीमारी या चोट के कारण होने वाली कठिनाई प्रार्थना में शामिल होने का एक वैध बहाना है। यदि कोई व्यक्ति बीमार या घायल है, तो उसे दोपहर और शाम और रात के समय की प्रार्थना में पहले या बाद की प्रार्थना के समय शामिल होने की अनुमति है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि उसके लिए सबसे आसान क्या है। हालांकि यह जरुरी है कि सभी प्रार्थना पूरी तरह पढ़नी चाहिए क्योंकि छोटी प्रार्थना की रियायत सिर्फ यात्री के लिए है।

शेख अल-इस्लाम इब्न तैमियाह ने कहा, "प्रार्थना को छोटा करने का कारण केवल यात्रा है, और जब कोई यात्रा न कर रहा हो तो इसकी अनुमति नही है। प्रार्थना में शामिल होने के लिए जब किसी के पास कोई बहाना या आवश्यकता होती है (बीमारी या चोट), यदि आवश्यक हो, तो वह छोटी या लंबी दूरी की यात्रा करते समय उनके साथ शामिल हो सकता है, और जब बारिश हो रही हो या इसी तरह का कुछ, या जब वह बीमार हो या इसी तरह का कुछ, या अन्य कारणों से उनके साथ शामिल हो सकता है। इसके पीछे का मकसद मुस्लिम राष्ट्र को मुश्किलों से बचाना है।"[2]

अनस इब्न मलिक ने कहा, "हम पैगंबर के साथ मदीना से मक्का गए, और जब तक हम मदीना नहीं लौटे तब तक उन्होंने हर बार अपनी प्रार्थना दो इकाई (यूनिट)में की।"[3]

उपवास करते समय रियायतें

रमजान के महीने में मुसलमानों के लिए उपवास रखना अनिवार्य है। यह इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, फिर भी, यदि व्यक्ति बुजुर्ग या दुर्बल है, या कोई अन्य वास्तविक कारण है जैसे कि कोई पुरानी बीमारी, तो मुस्लिम को उपवास में रियायत दी गई है। उन्हें छूटे हुए उपवासों की भरपाई करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन रमजान महीने के प्रत्येक दिन एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाना आवश्यक है। वह व्यक्ति जो उपवास के दौरान बीमार है लेकिन उसके ठीक होने की उम्मीद है, उसे या तो उपवास नहीं करने या अपना उपवास तोड़ने की अनुमति है; हालांकि उन्हें छूटे हुए उपवासों की भरपाई करना आवश्यक है।

"फिर यदि तुममें से कोई रोगी या यात्रा पर हो, तो उपवास के छोड़े गए दिनो को गिन के दूसरे दिनों में पूरा करे और जो उपवास को सहन न कर सके वो इसके बदले में एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाये..." (क़ुरआन 2:184)

यात्री को उपवास न रखने या अपना उपवास तोड़ने की भी अनुमति है यदि वे इतने दूर की यात्रा कर रहे हैं कि उन्हें प्रार्थना को कम करने की आवश्यकता पड़े। हालांकि, उन्हें छूटे हुए दिनों की भरपाई करनी होगी। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अपना उपवास तोड़ने की अनुमति है यदि उन्हें अपने लिए, अपने शिशुओं या अपने अजन्मे बच्चों के लिए इसकी वजह से कोई चिंता है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उन छूटे हुए दिनों की भरपाई करनी होगी जब उनकी परिस्थितियां या स्थितियां बदल जाएं।

हज (प्रमुख तीर्थयात्रा) में रियायतें

हज हर परिपक्व, समझदार और आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिम पर अनिवार्य है। इसे करने के लिए केवल वही लोग बाध्य हैं जिनके पास आवश्यक व्यवस्था और साधन हैं। इसमें बहुत गरीब और जरूरतमंद लोगों को छूट दी गई है। इसके अलावा, इसमें अन्य रियायतें भी दी गई हैं ताकि इस्लाम का यह स्तंभ कठिन न हो, और इसकी सभी समस्याएं समाप्त हो जाएं।

"तीर्थयात्रा मनुष्यों के लिए एक कर्तव्य है - जो यात्रा का खर्च उठा सकते हैं" (क़ुरआन 3:97)

यदि तीर्थयात्री बूढ़ा है, दुर्बल है, या चलने में असमर्थ है, लेकिन अन्यथा स्वस्थ है, तो परिवहन के अन्य रूप जैसे व्हीलचेयर का उपयोग कर सकता है। पैगंबर मुहम्मद के समय मे लोगों का गधे पर बैठ के काबा की परिक्रमा करना असामान्य नहीं था।

हज की रस्मों में से एक है रात भर मुजदलिफा मे रहना और सूर्योदय के बाद मीना जा के कंकड़ फेंकना। हालांकि, ईश्वर ने बूढ़े, कमजोर और महिलाओं और बच्चों को रात में कंकड़ फेंकने की रियायत दी है।

यह उन रियायतों की पूरी सूची नही है जो ईश्वर ने विश्वासियों की कठिनाइयां कम करने के लिए दी है। ये उदाहरण यह बताने के लिए दिए गए हैं कि ईश्वर ने इस्लाम के अनिवार्य स्तंभों में भी विश्वास करने वालों के लिए सुविधा और आराम रखा है।



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी।

[2] मजमू'अल-फतावा (22/293)।

[3] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम।

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