ईश्वर की दिव्य दया (3 का भाग 2): इसका सुखद अहसास
विवरण: दया, जैसा इस जीवन में और परलोक में बताया गया है।
- द्वारा Imam Mufti
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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ईश्वरीय दया सभी को हमेशा के लिए अपने में समेटे हुए। मानवजाति की देखभाल करने वाला, करुणा से भरा हुआ ईश्वर उन पर दया करता है। ईश्वर का नाम, अर-रहमान, दर्शाता है कि उनकी प्रेममयी दया उनके अस्तित्व का एक परिभाषित पहलू है; उनकी करुणा की परिपूर्णता असीम है; एक अथाह सागर जिसका कोई किनारा नहीं है। प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वानों में से एक, अर-रज़ी ने लिखा, 'सृष्टि के लिए ईश्वर की तुलना में स्वयं के प्रति अधिक दयालु होना अकल्पनीय है!' वास्तव में इस्लाम सिखाता है कि ईश्वर हम पर हमारी माँ से भी अधिक दयालु है।
ईश्वर अपनी असीम दया से मनुष्यों के लिए बागों में फल पैदा करने के लिए बारिश भेजता है। जिस प्रकार शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार आत्मा को भी आध्यात्मिक पोषण की आवश्यकता होती है। ईश्वर ने अपनी असीम दया से मनुष्यों के लिए पैगंबरों और दूतों को भेजा और इसे बनाए रखने के लिए शास्त्रों का खुलासा किया। ईश्वर ने अपनी दया मूसा के तौरात में दर्शाई है:
"... जिनके लिखे आदेशों में मार्गदर्शन तथा दया थी, उन लोगों के लिए, जो अपने पालनहार से ही डरते हों।" (क़ुरआन 7:154)
और क़ुरआन का रहस्योद्घाटन:
"... ये सूझ की बातें हैं, तुम्हारे पालनहार की ओर से तथा मार्गदर्शन और दया हैं उन लोगों के लिए जो विश्वास रखते हैं।" (क़ुरआन 7:203)
किसी के पूर्वजों के कुछ गुणों के कारण दया नहीं की जाती है। ईश्वर के वचन को सुनने और उस पर अमल करने पर ईश्वरीय दया दी जाती है:
"और यह किताब (क़ुरआन) हमने अवतरित की है, ये बड़ा शुभकारी है, अतः इसका पालन करो और ईश्वर से डरते रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।" (क़ुरआन 6:155)
"और जब क़ुरआन पढ़ा जाये, तो उसे ध्यानपूर्वक सुनो तथा मौन साध लो। शायद कि तुमपर दया की जाये।" (क़ुरआन 7:204)
आज्ञाकारिता से दया मिलती है:
"इसलिए प्रार्थना की स्थापना करो, ज़कात दो तथा पैगंबर की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर ईश्वर की दया हो।" (क़ुरआन 24:56)
ईश्वर की दया मनुष्य की आशा है। इसलिए विश्वासी ईश्वर से उनकी दया के लिए प्रार्थना करते हैं:
"... मुझे रोग लग गया है और तू सबसे अधिक दयावान् है!" (क़ुरआन 21:83)
वे आस्था रखने वालो के लिए ईश्वर की दया की याचना करते हैं:
"हे हमारे पालनहार! हमें मार्गदर्शन देने के बाद हमारे दिलों को कुटिल न कर; और हमें अपनी दया का उपहार दें, वास्तव में, तू बहुत बड़ा दाता है।" (क़ुरआन 3:8)
और वे अपने माता-पिता के लिए ईश्वर की दया की याचना करते हैं:
"... हे मेरे पालनहार! उन दोनों पर दया कर, जैसे उन दोनों ने बाल्यावस्था में मेरा लालन-पालन किया है!" (क़ुरआन 17:24)
ईश्वरीय दया का आवंटन
ईश्वर की दया विश्वास करने वालों और अविश्वासी, आज्ञाकारी और विद्रोही सब को अपनी बाहों में भर लेती है, लेकिन आने वाले जीवन में यह सिर्फ विश्वास करने वालों के लिए होगी। अर-रहमान का अर्थ है दुनिया में सभी के लिए दयालु, लेकिन आने वाले जीवन में उसकी दया सिर्फ विश्वास करने वालो के लिए होगी। न्याय के दिन अर-रहीम विश्वास करने वालों पर अपनी दया करेंगे:
"... मैं अपनी यातना जिसे चाहता हूं, उसे देता हूं। और मेरी दया प्रत्येक चीज़ के लिए है। मैं उसे उन लोगों के लिए लिख दूंगा, जो अवज्ञा से बचेंगे, ज़कात देंगे और जो हमारे संदेशों का पालन करेंगे, जो उस पैगंबर का अनुसरण करेंगे, जिन के आने का उल्लेख वे अपने पास तौरात तथा इंजील में पाते हैं ..." (क़ुरआन 7:156-157)
दया के ईश्वरीय आवंटन की व्याख्या इस्लाम के पैगंबर ने किया है:
"ईश्वर ने दया के सौ हिस्से बनाए। उसने एक हिस्सा अपनी रचना के बीच रखा जिसके कारण वे एक-दूसरे पर दया करते हैं। ईश्वर ने शेष निन्यानवे हिस्से को न्याय के दिन अपने दासों पर दया करने के लिए बचा लिया।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम, अल-तिर्मिज़ी, और अन्य।)
ईश्वरीय दया का एक अंश ही आकाश और पृथ्वी के लिए काफी है, मनुष्य एक दूसरे से प्रेम करते हैं, पशु-पक्षी पानी पीते हैं।
इसके अलावा, न्याय के दिन जो ईश्वरीय दया दी जाएगी, वह इस जीवन में हम जो देखते हैं उससे कहीं अधिक विशाल है, इसी तरह ईश्वरीय दंड भी जो हम यहां अनुभव करते हैं उससे कहीं अधिक है। इस्लाम के पैगंबर ने इन ईश्वरीय गुणों के दोहरे चरम की व्याख्या की:
"यदि एक आस्तिक को पता चल जाये कि ईश्वर ने क्या दंड रखा है, तो वह निराश होगा और कोई भी स्वर्ग की चाहत रखने की हिम्मत नहीं करेगा। यदि एक अविश्वासी को ईश्वर की असीम दया का पता चल जाये, तो कोई भी स्वर्ग के संबंध में निराश नहीं होगा।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम, अल-तिर्मिज़ी)
इस्लामी सिद्धांत के अनुसार, ईश्वर की दया ईश्वर के क्रोध से अधिक है:
"वास्तव में, मेरी दया मेरे दंड से अधिक है।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
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