एक मुस्लिम व्यक्ति का आदर्श व्यक्तित्व
विवरण: एक आदर्श मुस्लिम का चरित्र विशिष्ट और संयत होता है और क़ुरआन और हदीस के उपदेशों का पालन करता है। इसमें कई प्रकार के विभिन्न संबंध आते हैं जैसे अपने ईश्वर के साथ, स्वयं के साथ और अपने आस-पास के लोगों के साथ।
- द्वारा islamweb.net
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
- मुद्रित: 1
- देखा गया: 4,550 (दैनिक औसत: 4)
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
मुसलमान का ईश्वर के प्रति दृष्टिकोण
किसी भी मुस्लिम के व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ईश्वर में उसकी गहरी आस्था है और उसकी प्रतिबद्धता है कि इस सृष्टि में जो भी होता है और उसके साथ जो भी घटित होता है, वह केवल ईश्वर की इच्छा और आदेश से होता है। मुस्लिम ईश्वर से गहराई से जुड़ा होता है, उसे सदैव याद करता है, उस पर भरोसा करता है और उसकी आज्ञा का पालन करता है।
उसकी आस्था सच्ची और स्पष्ट होती है, अज्ञानता के किसी भी दोष, अंधविश्वास या भ्रम से मुक्त। उसकी आस्था और आराधना क़ुरआन की शिक्षा और प्रामाणिक हदीस पर आधारित होती हैं। उसे सदैव लगता है कि उसे ईश्वर की सहायता और सहारे की आवश्यकता है। उसके पास ईश्वर की इच्छा के आगे सर झुकाने, उसकी आराधना करने, सही मार्ग पर चलने और अच्छे कर्म करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं होता। उसकी यह मानसिकता उसे अपने सभी कार्यों में सही और ईमानदार रहने के लिये व्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों ही रूपों में मार्गदर्शन करती है।
एक मुस्लिम पूरी सृष्टि में ईश्वर की अपार शक्ति और सामर्थ्य के संकेतों को पहचानता है,और इसलिए ईश्वर में उसकी आस्था और बढ़ जाती है। ईश्वर कहता है:
"यह सच है, स्वर्ग और पृथ्वी का सृजन और रात और दिन का अंतर समझदार लोग उसकी सार्वभौमिकता का प्रतीक समझते हैं। वे ईश्वर का स्मरण करते हैं, उठते, बैठते, सोते, जागते, और स्वर्ग और पृथ्वी के सृजन को ध्यान में रखते हैं (और कहते हैं): हमारे पालनहार! आपने यह सब व्यर्थ नहीं बनाया। आप किसी भी प्रकार के दोष से मुक्त हैं! नरक की आग के दंड से हमारी रक्षा करें।" (क़ुरआन 3:190-191)
मुसलमान का स्वयं के प्रति दृष्टिकोण; मस्तिष्क, शरीर, और आत्मा
एक मुस्लिम अपने शरीर की अच्छी देखभाल करके और अच्छे स्वास्थ्य और शक्ति को बढ़ावा देकर अपने शरीर की आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखता है। ऐसा करने के लिये वह सक्रिय रहता है, और खाना कम खाता है। बल्कि, वह इतना खाता है कि जिससे उसका स्वास्थ्य और ऊर्जा बनी रहे क्योंकि वह समझता है कि एक स्वस्थ शक्तिवान भक्त एक निर्बल भक्त से अच्छा होता है। पैगंबर (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा है: "एक स्वस्थ शक्तिवान भक्त को ईश्वर एक निर्बल भक्त से अधिक प्यार करता है। यद्यपि दोनों में ही अच्छे गुण होते हैं।" सर्वशक्तिमान ईश्वर कहता है:
"खाओ और पियो; लेकिन बर्बाद न करो, क्योंकि ईश्वर उन लोगों से प्यार नहीं करता जो चीजों को बर्बाद करते हैं।" (क़ुरआन 7:31)
वह अपनी शारीरिक स्वच्छता पर भी ध्यान देता है क्योंकि पैगंबर ने उस पर बहुत बल दिया है। वह सदैव साफ़ सुथरा दिखाई देता है। उसके मुख की साफ़ सफ़ाई भी अच्छी रहती है क्योंकि पैगंबर ने सिवाक (अरक वृक्ष से बनी दांत कुरेदने की बारीक सुई) के प्रयोग को प्रोत्साहित किया। परंतु, यह सब उन्होंने इस्लाम के वस्तुओं के संयमित प्रयोग के आदर्शों के अनुरूप ही कहा है; किसी भी बात की अति और लापरवाही से बचते हुए। महान ईश्वर कहता है:
"(हे नबी!) इन (मिश्रणवादियों) से कहिए कि किसने ईश्वर की उस शोभा को ह़राम (वर्जित) किया है, जिसे उसने अपने सेवकों के लिए निकाला है? तथा स्वच्छ जीविकाओं को? आप कह दें: ये सांसारिक जीवन में उनके लिए (उचित) है, जो ईमान लाये तथा प्रलय के दिन उन्हीं के लिए विशेष है। इसी प्रकार, हम अपनी आयतों का सविस्तार वर्णन उनके लिए करते हैं, जो ज्ञान रखते हों।" (क़ुरआन 7:32)
अपने शरीर के अतिरिक्त एक मुस्लिम अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखता है। ऐसा वह नशीले और उत्तेजक पदार्थों से दूर रह कर करता है। वह अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिये प्रतिदिन व्यायाम करना भी नहीं भूलता क्योंकि शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य में सीधा संबंध होता है। वह अपने मस्तिष्क का भी ध्यान रखता है, धार्मिक और धर्म निरपेक्ष दोनों तरह की लाभप्रद जानकारी प्राप्त करके। ईश्वर कहता है:
"और कहो: मेरे पालनहार! मेरे ज्ञान में वृद्धि कर।"(क़ुरआन 20:114)
एक मुस्लिम अपने आध्यात्मिक विकास पर भी उतना ही ध्यान देता है जितना अपने शारीरिक और बौद्धिक विकास पर। वह ऐसा इतने संतुलित तरीके से करता है कि किसी एक पक्ष पर अधिक ध्यान नहीं देता ताकि दूसरे पक्षों में कमी न हो जाए। इसलिए एक मुस्लिम का जीवन ईश्वर की याद और आराधना के इर्द गिर्द ही घूमता है; प्रतिदिन पांच बार पूजा, रमजान के महीने में व्रत आदि।
लोगों के प्रति मुस्लिम का दृष्टिकोण
माता पिता के प्रति, मुस्लिम सच्ची आज्ञाकारिता और प्रेम का एक उदाहरण होता है। वह उनके साथ नेकी और आदर, असीम करुणा, बेहद विनम्रता और गहरी कृतज्ञता का व्यवहार करता है। वह उनके स्तर को पहचानता है और ईश्वर के निर्देशानुसार उनके प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है। ईश्वर कहता है:
"ईश्वर की पूजा करो और किसी चीज़ को उसका साझी न बनाओ और माता पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो।" (क़ुरआन 4:36)
अपनी पत्नी के साथ मुस्लिम अच्छे और नेक व्यवहार, बुद्धिमत्तापूर्ण निभाव, महिलाओं के बारे में गहरी समझ, और अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का उचित निर्वहन करने की मिसाल होता है।
अपने बच्चों के प्रति, मुस्लिम एक ऐसा अभिभावक होता है जो उनके प्रति अपनी गहन जिम्मेदारी को समझता है। वह ऐसी हर बात पर ध्यान देता है जिससे उनके इस्लामिक विकास पर प्रभाव पड़ता हो और उन्हें उचित शिक्षा देता है। यह इसलिए, ताकि वे समाज का सक्रिय और रचनात्मक अंग बन सकें, और अपने माता पिता और समुदाय के लिये अच्छाई का स्रोत बन सकें।
अपने संबंधियों के प्रति, मुस्लिम संबंध बनाए रखता है और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को जानता है। वह इस्लाम में बताए गए उनके ऊंचे स्तर को समझता है, और इस कारण वह उनके संपर्क में रहता है, चाहे कुछ भी परिस्थितयां क्यों न हो।
अपने पड़ोसियों के प्रति, मुस्लिम अच्छा व्यवहार दिखाता है और दूसरों की भावनाओं और समवेदनाओं का ध्यान रखता है। वह उनके दुर्व्यवहार को सह लेता है और अपने पड़ोसियों के दोषों को अनदेखा कर देता है और इस बात का ध्यान रखता है कि वह स्वयं ऐसी गलतियाँ न करे।
एक मुस्लिम का अपने भाइयों और मित्रों से रिश्ता सबसे अच्छा और पवित्र रिश्ता है क्योंकि यह ईश्वर के लिये प्यार करने की भावना पर आधारित होता है। वह उनसे प्यार करता है और उनके साथ रुखा व्यवहार नहीं करता है। वह उनके लिये वफादार होता है और उन्हें धोखा नहीं देता। वह ईमानदार होता है और उनसे धोखा नहीं करता। वह सहनशील और क्षमाशील होता है। वह उदार भी होता है और उनकी प्रसन्नता और सुख समृद्धि के लिये उन्हें सहारा देता है।
मुस्लिम सभी लोगों से अपने सामाजिक व्यवहार में तमीजदार, सभ्य, सज्जन होता है, और ऐसी मनोवृत्तियां रखता है जिन्हें इस्लाम प्रोत्साहन देता है। ऐसे कुछ लक्षण हैं: दूसरों से ईर्ष्या न करना, अपने वायदों का पालन करना, शालीनता, निंदा और गाली गलौज न करना, दूसरों के मामलों में टाँग न अड़ाना, गप्पबाजी से दूर रहना, और मुसीबतें न पैदा करना।
यही वे कुछ खूबियाँ और मनोवृत्तियां हैं जिन्हें हर मुस्लिम अपने चरित्र और व्यक्तित्व का अंग बनाने का प्रयत्न करता है। यही कारण है कि ऐसा समाज, जिसमें ऐसे गुणों वाले लोग रहते हैं, सच्चा सुख और शांति का आनंद उठाता है।
टिप्पणी करें