मृत्यु के बाद का जीवन (2 का भाग 2): इसके लाभ

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विवरण: मृत्यु के बाद जीवन को मानने के कुछ लाभ, साथ ही इसके अस्तित्व में विश्वास करने के विभिन्न कारण।

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  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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खराब श्रेष्ठ

क़ुरआन यह भी कहता है कि सांसारिक जीवन दरअसल मृत्यु के बाद के अनंत जीवन की तैयारी है। लेकिन जो इसे अस्वीकार करते हैं वे अपने जुनून और इच्छाओं के दास बन जाते हैं, और गुणी और ईश्वर के प्रति आस्थावान लोगों का मज़ाक उड़ाते हैं। ऐसे लोग केवल मृत्यु के समय ही अपनी गलती का अनुभव करते हैं और इस संसार में एक और अवसर पाने की व्यर्थ कामना करते हैं। मृत्यु के समय उनकी दयनीय हालत , परिणाम के दिन का भय, और ईमानदारी से आस्था का निर्वाह करने वालों के लिये सुनिश्चित अनंत आनद का विवरण क़ुरआन के इन सुंदर छंदो में किया गया है।

" तब, जब उनमें से किसी को मृत्यु आती है, वह कहता है, 'मेरे पालनहार, मुझे वापस भेज दें, ताकि मैं वहाँ जो करके आया हूँ उसे ठीक कर सकूँ!" पर नहीं! वह केवल बात रह जाती है; और उनके पीछे एक रुकावट रहती है उस दिन तक जब तक वह उठाई नहीं जाती। और जब तुरही बजाई जाती है उस दिन उनमें कोई रिश्ते नहीं रह जाते, न ही कोई एक दूसरे के बारे में पूछता है। फिर जिनके काम का पलड़ा भारी होता है, वे सफल हो जाते हैं। और जिनका पलड़ा हल्का होता है वे अपनी आत्मा को खो देते हैं, नरक में रहते हैं, आग उनके चेहरों को जला देती है और वे वहाँ दुखी रहते हैं।"(क़ुरआन 23:99-104)

मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास न सिर्फ़ उस ऊपरी संसार में सफ़लता की गारंटी देता है, वरन इस संसार को भी शांति और खुशियों से भर देता है। ऐसा इसलिए होता है कि ईश्वर के प्रति भय के कारण लोग अपने कार्य कलाप में बहुत जिम्मेदार और कर्तव्यपरायण हो जाते है: उसके दंड का भय और उसके पुरुस्कार की आशा।

अरब के लोगों को देखो। जुआ, शराब, जनजातीय झगड़े, लूट और हत्या उनके समाज की तब मुख्य विशेषताएँ थीं जब उन्हें मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास नहीं था। लेकिन जैसे ही उन्होंने एक ईश्वर में और मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करना शुरू किया, वह विश्व के सबसे अधिक अनुशासित देश बन गए। उन्होंने अपनी बुरी आदतें छोड़ दीं, मुसीबत के समय एक दूसरे के काम आने लगे, और अपने झगड़े न्याय और बराबरी के आधार पर तय करने लगे। इसी तरह, मृत्यु के बाद के जीवन को अस्वीकार करने के दुष्परिणाम न केवल मृत्यु के बाद के जीवन में होते हैं, बल्कि इस संसार में भी होते हैं। जब एक पूरा देश इसे अस्वीकार करने लगता है, तो समाज में सब तरह की बुराइयाँ और भ्रष्टाचार फैल जाता है और अंततः वह समाज नष्ट हो जाता है। क़ुरआन में 'आद', थमुद और फिरौन के इस दुखद अंत के बारे कुछ विस्तार में बताया गया है:

"थामूद और 'आद' (जनजातियाँ) ने न्याय के दिन पर विश्वास नहीं किया। जहाँ तक थामूद का प्रश्न है, वह आकाश की बिजली से मारे गए, और 'आद', भीषण गरजती हुई हवाओं से नष्ट हो गए, जो उसने उन पर सात लंबी रातों और आठ लंबे दिनों तक चलायीं, जिससे आप उन्हें लंबे लेटे हुए देख सकते थे मानो वह खजूर के गिरे हुए पेड़ों के तने थे।

"तो क्या आप देखते हैं कि उनमें कोई शेष रह गया है? और किया यही पाप फ़िरऔन ने और जो उसके पूर्व थे तथा जिनकी बस्तियाँ औंधी कर दी गयीं। उन्होंने गलतियाँ कीं और उनके पहले के लोगों ने भी कीं और उन्होंने अपने ईश्वर के पैगंबर के विरुद्ध विद्रोह किया, तो उसने उन्हें अपनी मजबूत पकड़ में जकड़ लिया। और देखो, पानी जब बढ़ा, तो हमने एक भागते हुए जहाज में तुमको शरण दी ताकि हमारे कारण तुम्हें और दूसरे सुनने वालों को यह याद रह सके।

"इसलिए जब तुरही एक साँस में बजाई जाती है और भूमि और पर्वत उठा दिए जाते हैं और एक अकेले प्रहार से चकनाचूर कर दिए जाते हैं, तब उस दिन, आतंक फैलेगा, और आकाश टूट जाएगा, और वह दिन बहुत दुर्बल होगा।

"और फिर उसके लिये जिसके दायें हाथ में उसकी किताब दी जाएगी, वह कहेगा 'यह लो, यह किताब लो और इसे पढ़ो! मुझे विश्वास था कि मैं मिलने वाला हूँ अपने ह़िसाब से।' तो एक ऊंचे बाग में उसका मनोहारी जीवन होगा, उसके फल पास में होंगे ताकि एकत्र कर सको। (उनसे कहा जायेगाः) खाओ तथा पियो आनन्द लेकर उसके बदले, जो तुमने किया है विगत दिनों (संसार) में।

"और जिसे दिया जायेगा उसका कर्मपत्र उसके बायें हाथ में, तो वह कहेगाः हाय! मुझे मेरा कर्मपत्र दिया ही न जाता! तथा मैं न जानता कि क्या है मेरा ह़िसाब! काश मेरी मौत ही निर्णायक होती! नहीं काम आया मेरा धन। मुझसे समाप्त हो गया, मेरा प्रभुत्व। " (क़ुरआन 69:4-29)

इसलिए, यह मानने के संतोषजनक कारण हैं कि मृत्यु के बाद जीवन है।

पहला, ईश्वर के सभी पैगंबरों ने अपने लोगों से कहा है कि इस पर विश्वास करें।

दूसरा, जब भी कोई समाज इस विश्वास पर बनाया जाता है, तो वह सबसे आदर्श और शांतिपूर्ण समाज होता है, सारी सामाजिक और नैतिक बुराइयों से दूर।

तीसरा,इतिहास गवाह है कि जब भी इस विश्वास को लोगों के एक समूह ने पैगंबर की लगातार चेतावनियों के बावजूद सामूहिक रूप से अस्वीकार किया है, उस समूह को ईश्वर द्वारा इसी संसार में दंडित किया गया है।

चौथा, मनुष्य की नैतिक, सौंदर्यात्मक और तर्कसंगत सोच मृत्यु के बाद के जीवन की संभावना का समर्थन करती है।

पाँचवा, ईश्वर के न्याय और दया की क्षमताओं का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा अगर मृत्यु के बाद जीवन नहीं है।

खराब श्रेष्ठ

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