बीमार होने पर कैसा व्यवहार करें (2 का भाग 1): धैर्य के साथ कष्ट को सहना
विवरण: ईश्वर की अनुमति के बिना इंसान को कोई भी बीमारी या चोट नहीं लग सकती।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2009 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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एक आस्तिक बीमार या घायल होने पर कैसे व्यवहार करता है, इस बारे में बात करने से पहले यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस्लाम हमें इस दुनिया के जीवन के बारे में क्या सिखाता है। पृथ्वी का यह जीवन परलोक में हमारे वास्तविक जीवन के रास्ते पर एक कुछ समय का पड़ाव है। स्वर्ग या नरक हमारा स्थायी ठिकाना है। यह दुनिया हमारे इम्तेहान की जगह है। ईश्वर ने इसे हमारे आनंद के लिए बनाया है, लेकिन यह सिर्फ सांसारिक सुखों के स्थान से अधिक कुछ भी नहीं है। यहीं पर हम अपना असली उद्देश्य पूरा करते हैं; हम अपना जीवन ईश्वर की पूजा के आधार पर जीते हैं। हम हंसते हैं, खेलते हैं, रोते हैं और दिल का दर्द और दुख महसूस करते हैं, लेकिन हर परिस्थिति और हर भावना ईश्वर की ओर से है। हम धैर्य और कृतज्ञता के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और कभी न ख़त्म होने वाला इनाम पाने की आशा करते हैं। हम कभी न ख़त्म होने वाले दंड से डरते हैं और निश्चित रूप से जानते हैं कि ईश्वर ही सभी दया और सभी क्षमा का स्रोत है।
"और दुनिया का यह जीवन केवल मनोरंजन और खेल है! वास्तव में परलोक का घर ही वास्तविक जीवन है (अर्थात परलोक का जीवन कभी समाप्त नहीं होगा), अच्छा होता यदि वे जानते।" (क़ुरआन 29:64)
ईश्वर ने हमें बना के सिर्फ जीवन के सुखों और परीक्षणों के लिए नहीं छोड़ दिया; बल्कि उसने हमें सिखाने के लिए दूतों और पैगंबरो को भेजा और हमारे मार्गदर्शन के लिए रहस्योद्घाटन की पुस्तकें भेजी। उन्होंने हम पर अनगिनत कृपा भी करी। प्रत्येक कृपा जीवन को अद्भुत और कभी-कभी सहने योग्य बनाती है। यदि हम एक पल के लिए रुक कर अपने अस्तित्व पर विचार करें तो ईश्वर की कृपा स्पष्ट पता चलेगी। बाहर गिरने वाली बारिश को देखें, अपनी त्वचा पर धूप को महसूस करें, अपनी छाती को स्पर्श करें और अपने दिल की लयबद्ध धड़कन को महसूस करें। ये ईश्वर की कृपा ही हैं और हमें अपने घरों, अपने बच्चों और अपने स्वास्थ्य के अलावा इनके लिए भी आभारी होना चाहिए। परन्तु ईश्वर हमें बताता है कि हमारी परीक्षा ली जाएगी, वह कहते हैं,
"और निश्चय ही हम भय, भूख, धन, जीवन और फलों की हानि के जरिये तुम्हारी परीक्षा लेंगे, परन्तु धैर्य रखने वालों को इनाम देंगे।" (क़ुरआन 2:155)
ईश्वर ने हमें अपनी परीक्षाओं और समस्याओं को धैर्यपूर्वक सहने की सलाह दी है। हालांकि यह मुश्किल है यह समझे बिना कि इस दुनिया में जो कुछ भी होता है वह ईश्वर की अनुमति से होता है। ईश्वर की आज्ञा के बिना पेड़ से कोई पत्ता भी नहीं गिरता। ईश्वर की अनुमति के बिना कोई भी व्यवसाय खत्म नहीं होता, कोई कार दुर्घटनाग्रस्त नहीं होती, और कोई भी विवाह समाप्त नहीं होता। ईश्वर की अनुमति के बिना कोई भी बीमारी या चोट इंसान को नहीं लगती। सभी चीजों पर उसका अधिकार है। ईश्वर जो भी करता है वह किसी कारण से करता है जो कभी-कभी हमारी समझ से परे होते हैं और ये कारण स्पष्ट हो भी सकते हैं या नहीं भी। हालांकि, ईश्वर अपने अनंत ज्ञान और दया से वही करते हैं जो हमारे लिए सबसे अच्छा हो। अंततः हमारे लिए जो सबसे अच्छा है वह है कभी न खत्म होने वाला जीवन और सुख अर्थात स्वर्ग।
"उन्हें उनका ईश्वर शुभ सूचना देता है अपनी दया और प्रसन्नता की तथा ऐसे स्वर्गों की जिनमें स्थायी सुख के साधन हैं।" (क़ुरआन 9:21)
एक आस्तिक हर परीक्षा की घड़ी में निश्चित रहता है कि ईश्वर उसके लिए अच्छा ही करेगा। ये अच्छाई इस दुनिया के सुखों में से हो सकती है या यह परलोक में हो सकती है। पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा, "वास्तव में एक विश्वास करने वाले की बातें आश्चर्यजनक हैं! ये सभी उसके फायदे के लिए हैं। अगर उसके जीवन में कुछ अच्छा होता है तो वह आभारी होता है, और यह उसके लिए अच्छा है। और यदि उसके साथ कुछ बुरा होता है, तो वह धैर्य से सहन करता है और यह भी उसके लिए अच्छा है।"[1] ईश्वर जीवन की परीक्षाओं और समस्याओं के जरिये हमारी परीक्षा लेते हैं, और यदि हम धैर्यपूर्वक सहन करेंगे तो हमें अच्छा इनाम मिलेगा। बदलती परिस्थितियों और कठिन समय के माध्यम से ईश्वर हमारे विश्वास के स्तर की परीक्षा लेते हैं, धैर्य रखने की हमारी क्षमता देखते हैं और हमारे कुछ पापों को मिटा देते हैं। ईश्वर प्यार करने वाले और बुद्धिमान हैं और हमको हम से बेहतर जानते हैं। हमें उनकी दया के बिना स्वर्ग नहीं मिलेगा और उनकी दया इस जीवन की परीक्षाओं और समस्याओं में है।
इस संसार का जीवन तो केवल छलावा है। हमारे लिए सबसे फायदेमंद चीज वो अच्छे कर्म हैं जिन्हें हमने किया था। परिवार एक परीक्षा है, क्योंकि ईश्वर कहते हैं कि ये हमें भटका सकते हैं, लेकिन ये हमें स्वर्ग में भी ले जा सकते हैं। धन एक परीक्षा है; इसका लालच हमें लालची और कंजूस बना सकता है, लेकिन इसे बांटना और इसका इस्तेमाल ज़रूरतमंदों के लिए करना हमें ईश्वर के करीब ला सकता है। स्वास्थ्य भी एक परीक्षा है। अच्छे स्वास्थ्य से हम अजेय महसूस कर सकते हैं और हमें लग सकता है कि ईश्वर की आवश्यकता नहीं है, लेकिन खराब स्वास्थ्य हमें विनम्र बनाता है और हमें ईश्वर पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करता है। एक आस्तिक जीवन की परिस्थितियों में कैसा व्यवहार करता है यह बहुत महत्वपूर्ण है।
क्या होगा अगर इस जीवन के सुख अचानक पीड़ा बन जाएं? बीमारी या चोट लगने पर व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए? बेशक हम अपने भाग्य को स्वीकार करते हैं और दर्द, उदासी या पीड़ा को धैर्यपूर्वक सहन करने का प्रयास करते हैं क्योंकि हम निश्चित रूप से जानते हैं कि ईश्वर इससे हमारा अच्छा करेगा। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "मुसलमान पर कोई दुर्भाग्य या बीमारी नहीं आती, कोई चिंता या शोक या नुकसान या संकट नहीं आता - यहां तक कि एक कांटा भी नहीं चुभता - लेकिन ईश्वर इसकी वजह से उसके कुछ पापों को क्षमा कर देता है।"[2] हालांकि हम अपूर्ण मनुष्य हैं। हम इन शब्दों को पढ़ सकते हैं, हम भावना को भी समझ सकते हैं, लेकिन स्वीकृति के साथ व्यवहार करना कभी-कभी बहुत कठिन होता है। हमारा अपनी स्थिति को देख के दुखी होना और रोना बहुत आसान है, लेकिन हमारे सबसे दयालु ईश्वर ने हमें स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं और हमें दो चीजों का वादा किया है, यदि हम उनकी पूजा करते हैं और उनके आदेशों का पालन करते हैं तो हमें स्वर्ग दिया जाएगा और दूसरा ये कि कठिनाई के बाद आसानी आती है।
"तो वास्तव में, कठिनाई के साथ राहत है।" (क़ुरआन 94:5)
एक आस्तिक अपने शरीर और मन की देखभाल करने के लिए बाध्य है, इसलिए उसके लिए अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखना आवश्यक है। लेकिन जब बीमारी या चोट लग जाती है तो ईश्वर के मार्गदर्शन का पालन करना अत्यावश्यक है। एक आस्तिक को चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए और इलाज या ठीक होने के लिए वह सब करना चाहिए जो वो कर सकता है, लेकिन साथ ही उसे प्रार्थना, ईश्वर की याद और पूजा के माध्यम से मदद लेनी चाहिए। इस्लाम जीवन जीने का एक समग्र तरीका है, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य दोनों साथ-साथ चलते हैं। भाग दो में हम बीमारी या चोट लगने पर उठाए जाने वाले कदमों के बारे में अधिक विस्तार से चर्चा करेंगे।
बीमार होने पर कैसा व्यवहार करें (2 का भाग 2): ईश्वर की दया की कोई सीमा नहीं है
विवरण: बीमार होने या चोट लगने पर उठाए जाने वाले व्यावहारिक कदम।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2009 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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भाग एक में हमने चर्चा करी कि कैसे जीवन की परीक्षाओं और समस्याओं को धैर्य के साथ और इस समझ के साथ सहें कि ईश्वर की अनुमति के बिना कुछ भी नहीं होता है।
“और परोक्ष की कुंजियां उसी के पास हैं; उसके सिवा उन्हें कोई नहीं जानता। और वह जानता है कि भूमि पर और समुद्र में क्या है। एक पत्ता नहीं गिरता लेकिन वह जानता है और न कोई अन्न जो धरती के अंधेरों में हो और न कोई नम और न कोई शुष्क, परन्तु वह एक खुली पुस्तक में है। (क़ुरआन 6:59)
जब बीमारी या चोट लगती है तो इसका कारण स्पष्ट नहीं हो सकता या शायद हमारी समझ से परे भी हो सकता है। हालांकि ईश्वर मानवजाति के लिए केवल अच्छा चाहता है। इसलिए हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कष्ट के पीछे कोई अच्छा कारण है और यह हमें ईश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने का अवसर प्रदान करता है। मनुष्य के पास निश्चित रूप से स्वतंत्र इच्छा है और किसी भी स्थिति का सामना अपने हिसाब से कर सकता है, लेकिन सबसे अच्छा रास्ता धैर्य और स्वीकृति है।
पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने हमें बताया कि हमारे विश्वास के स्तर के अनुसार हमारी परीक्षा होगी और इन परीक्षाओं का सबसे कम इनाम ये होगा की हमारे पाप मिटा दिए जायेंगे। उन्होंने कहा, "व्यक्ति की परीक्षा उसके धार्मिक प्रतिबद्धता के स्तर के अनुसार ली जाएगी, और परीक्षाएं ईश्वर तब तक लेता रहेगा जब तक धरती पर उसके सारे पाप खत्म न हो जाए।[1]
जब हम बीमार होते हैं या हमें चोट लगती है तो हमारा डरना स्वाभाविक है। कभी-कभी हम यह सोचकर नाराज भी हो सकते हैं कि ईश्वर ने ऐसा क्यों किया। हम सवाल करते हैं और शिकायत करते हैं, लेकिन वास्तव में इससे हमारे दुख या पीड़ा बढ़ने के अलावा कुछ नहीं होता। ईश्वर ने अपनी असीम बुद्धि और दया से हमें बीमारी या चोट लगने पर कैसे व्यवहार करना है, इस बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं। यदि हम इन दिशानिर्देशों का पालन करें तो हम दुखों को आसानी से सह सकते हैं और आभारी भी हो सकते हैं। जब एक आस्तिक बीमार होता है या उसे चोट लगती है तो वह ईश्वर पर भरोसा रखता है, ईश्वर ने उसके लिए जो भी स्थिति तय की है उसके लिए आभार व्यक्त करता है, और चिकित्सा सहायता लेता है।
इस्लाम में चिकित्सीय उपचार की अनुमति है और चिकित्सा सहायता लेने का मतलब ये नहीं है कि हम ईश्वर पर भरोसा नहीं करते। पैगंबर मुहम्मद ने इसे यह कह कर स्पष्ट कर दिया, "ऐसी कोई बीमारी नहीं है इसका इलाज न हो।"[2] एक आस्तिक बीमारियों और चोटों के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जा सकता है। वह दिमाग की बीमारियों या भावनात्मक स्थितियों का पता लगाने और इलाज कराने के लिए जा सकता है। हालांकि कुछ छोटी-छोटी शर्तें हैं, जिनमें यह भी शामिल है कि किसी ऐसी चीज़ से इलाज नहीं किया जा सकता है जो निषिद्ध है, जैसे कि शराब। अंतत: ईश्वर किसी ऐसी चीज में इलाज नहीं देता जिसे उसने निषिद्ध किया है।
ज्योतिषियों, भविष्यवक्ताओं और किसी भी तरह के अन्य धोखेबाजों से इलाज कराने की अनुमति नही है। ये लोग भविष्य का ज्ञान होने का दावा करते हैं, जो संभव नहीं है और वे केवल लोगों को लूटने और उन्हें एक सच्चे ईश्वर से भटकाने की कोशिश करते हैं। ईश्वर ने बीमारी और चोट से बचने के लिए ताबीज और टोटका के इस्तेमाल को भी मना किया है। सारी शक्ति सिर्फ ईश्वर के पास है। ठीक होने या सुरक्षित रहने के लिए ईश्वर के अलावा किसी अन्य व्यक्ति या किसी अन्य चीज से प्रार्थना करना एक बहुत ही बड़ा पाप है।
इस भौतिक संसार में इलाज की तलाश में आध्यात्मिक इलाजों को तलाशना भी महत्वपूर्ण है। सबसे पहले ईश्वर के बारे में सकारात्मक सोचें, उनपर विश्वास रखें, और उसके नामों और विशेषताओं पर विचार करें। वह सबसे दयालु, सबसे ज्यादा प्यार करने वाला और सबसे बुद्धिमान है। हमें उसे उन नामों से पुकारने की सलाह दी जाती है जो हमारी आवश्यकताओं के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
"और (सभी) सबसे सुंदर नाम ईश्वर के हैं, इसलिए उसे इन नामों से पुकारें।" (क़ुरआन 7:180)
ईश्वर ने हमें इस दुनिया की परीक्षाओं और समस्याओं के लिए नहीं छोड़ा है, उन्होंने हमें मार्गदर्शन और पीड़ा और संकट के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार दिया है - क़ुरआन, स्मरण और प्रार्थना के शब्द, और प्रार्थना। [3] जैसे-जैसे हम 21वीं सदी में आगे बढ़ रहे हैं, हमने प्रामाणिक आध्यात्मिक उपचारों के बजाय चिकित्सा सहायता पर भरोसा करना शुरू कर दिया है, हालांकि दोनों का उपयोग एक साथ करना अक्सर बहुत प्रभावी हो सकता है । कभी-कभी बीमारियां बनी रहती हैं, कभी-कभी चोटें पुरानी हो जाती हैं, लेकिन कभी-कभी खराब स्वास्थ्य से बहुत बड़ी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि मिलती है।
हमने कितनी बार दुर्बल करने वाली बीमारियों या विकलांगता से ग्रसित लोगों को उनकी स्थितियों के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते सुना है, या बात करते सुना है कि किस तरह दर्द और पीड़ा उनके जीवन में आशीर्वाद और अच्छाई ले कर आई है। जब हम अकेला और व्यथित महसूस करते हैं तो ईश्वर ही हमारा एकमात्र सहारा होता है। जब दर्द और पीड़ा असहनीय हो जाती है, जब भय और दुख के अलावा कुछ नहीं बचता, तब हम उस एक चीज तक पहुंच जाते हैं जो हमें पाप से मुक्ति दिला सकता है - ईश्वर। ईश्वर की इच्छा के प्रति पूर्ण विश्वास और पूर्ण समर्पण से आनंद और स्वतंत्रता मिलती जिसे विश्वास की मिठास के रूप में जाना जाता है। यह शांति और संतुष्टि है और यह इस दुनिया में आने वाली सभी अच्छी, बुरी, बदसूरत, दर्दनाक, कष्टदायक और आनंदित करने वाली स्थितियों को स्वीकार करने में हमें सक्षम बनाती है।
अंत में यह समझना महत्वपूर्ण है कि बीमारियां और चोटें हमें पापो से मुक्ति दिलाने का ईश्वर का एक तरीका हो सकता हैं। मनुष्य पूर्ण नहीं हैं, हम गलतियां करते हैं, बुरे कार्य करते हैं, और यहां तक कि जानबूझकर ईश्वर के आदेशों की अवहेलना करते हैं।
"और जो भी दुख तुम्हें पहुंचता है, वह तुम्हारे अपने करतूत से पहुचता है तथा वह क्षमा कर देता है तुम्हारे बहुत-से पापों को।" (क़ुरआन 42:30)
ईश्वर की कृपा को कभी कम नहीं आंकना चाहिए। वह कहता है कि मुझसे (ईश्वर) क्षमा मांगो। पैगंबर मोहम्मद ने हमें याद दिलाया कि ईश्वर हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि हम उनसे मांगे। रात के आखिरी हिस्से में जब पूरी जमीन पर गहरा अंधेरा छा जाता है, ईश्वर सबसे निचले आसमान पर आते हैं और अपने बंदो से कहते हैं "कोई है जो मुझसे प्रार्थना करे और मैं उसका उत्तर दूं? कोई है जो मुझसे मांगे और मैं उसे दे दूं? कोई है जो मुझसे क्षमा मांगे और मैं उसे क्षमा कर दूं?"[4]
हमें अक्सर हमारे कार्यों के कारण दुर्भाग्य, दर्द और पीड़ा होती है। हम पाप करते हैं, लेकिन ईश्वर हमें धन, स्वास्थ्य या उन चीजों के नुकसान से जिनसे हम प्यार करते है, हमारे पाप मिटाते हैं। कभी-कभी इस दुनिया में कष्ट का मतलब होता है कि हमें परलोक में कष्ट नही होगा, कभी-कभी सभी दर्द और संकट का मतलब होता है कि हमें स्वर्ग में एक उच्च पद मिलेगा।
बुरे लोगों के साथ अच्छी चीजें क्यों होती हैं या अच्छे लोगों के साथ बुरी चीजें क्यों होती हैं, इसके पीछे का राज सिर्फ ईश्वर जानता है। सामान्य तौर पर जो कुछ भी हमें ईश्वर की ओर ले जाता है वह अच्छा होता है। संकट के समय लोग ईश्वर के करीब आ जाते हैं, जबकि आराम के समय में हम अक्सर भूल जाते हैं कि आराम कहां से आया है। देने वाला ईश्वर है और वह सबसे उदार है। ईश्वर हमें कभी न खत्म होने वाले जीवन का उपहार देना चाहता है और यदि दर्द और पीड़ा स्वर्ग जाने की गारंटी है तो बीमारी और चोट एक आशीर्वाद है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "यदि ईश्वर किसी का भला करना चाहता है तो वह उसकी परीक्षा लेता है।"[5]
जब बीमारी आती है तो सबसे पहला काम है ईश्वर को धन्यवाद देना, उनके करीब जाने की कोशिश करना और चिकित्सा सहायता लेना और उन आशीर्वादों को गिनना जो उन्होंने हमें दिए हैं।
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