क्या ईश्वर को हमारी पूजा की आवश्यकता है? उसने हमें उसकी पूजा करने के लिए क्यों पैदा किया?
विवरण: ईश्वर ही एकमात्र ऐसा है जो हमारी सभी पूजा के योग्य है, और हम उसकी पूजा करने के लिए पैदा किये गए हैं। यह लेख अक्सर पूछे जाने वाले उन दो प्रश्नों का उत्तर देगा जो निम्नलिखित हैं: क्या उसे हमारी पूजा की आवश्यकता है और उसने हमें उसकी पूजा करने के लिए क्यों पैदा किया?
- द्वारा Hamza Andreas Tzortzis (http://www.hamzatzortzis.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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इन सवालों का जवाब देने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि पहले यह समझ लें कि पूजा के संदर्भ में ईश्वर कौन है। परिभाषा के अनुसार ईश्वर वह है जो हमारी पूजा के योग्य है; यह उसके अपने अस्तित्व का एक आवश्यक तथ्य है। क़ुरआन बार-बार ईश्वर के बारे में इस तथ्य पर प्रकाश डालता है,
"निःसंदेह मैं ही ईश्वर हूँ, मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं, तो मेरी ही इबादत (वंदना) कर तथा मेरे स्मरण (याद) के लिए नमाज़ की स्थापना कर।" (क़ुरआन 20:14)
चूंकि परिभाषा के अनुसार ईश्वर ही एकमात्र ऐसा है जो पूजा के योग्य है, तो हमारी सभी पूजा सिर्फ उसी के लिए होनी चाहिए।
इस्लामी परंपरा में ईश्वर को परम पूर्ण माना जाता है। उसके सभी नाम और गुण उच्चतम स्तर के हैं। उदाहरण के लिए, इस्लामी धर्मशास्त्र में ईश्वर को सबसे अधिक प्यार करने वाला बताया गया है, और इसका मतलब है कि उसका प्यार सबसे उत्तम और सबसे महान प्यार है। इन्हीं नामों और गुणों के कारण ही ईश्वर की पूजा करनी चाहिए। हम हमेशा लोगों की दया, ज्ञान और समझदारी के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं। हालांकि, ईश्वर की दया, ज्ञान और समझदारी जहां तक संभव हो सकती है बिना किसी कमी या दोष के उच्चतम स्तर की है। इसलिए वह सबसे अधिक प्रशंसा के योग्य है और ईश्वर की प्रशंसा पूजा का एक रूप है। केवल ईश्वर ही हमारी याचना और प्रार्थनाओं के योग्य है। वह अच्छी तरह जानता है कि हमारे लिए क्या बेहतर है, और वह हमारा भला भी करना चाहता है। इन गुणों वाले से ही व्यक्ति को प्रार्थना करनी चाहिए, और उससे सहायता मांगनी चाहिए। ईश्वर हमारी पूजा के योग्य है क्योंकि ईश्वर में कुछ ऐसा है जो उसे इस योग्य बनाता है। वह सबसे उत्तम नामों और विशेषताओं वाला है।
ईश्वर की पूजा करने के संबंध में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उसका अधिकार है भले ही हम किसी भी प्रकार के आराम के प्राप्तकर्ता न हों। यदि हम दुखों से भरा जीवन जी रहे हैं, तो भी ईश्वर को पूजना है। ईश्वर की पूजा किसी भी प्रकार के पारस्परिक संबंध पर निर्भर नही है; वह हमें जीवन देता है, और हम बदले मे उसकी पूजा करते हैं। मैं यहां जो कह रहा हूं उसका गलत मतलब मत निकालना, ईश्वर के हम पर बहुत उपकार हैं; हालांकि, ईश्वर जो है इसलिए उसकी पूजा की जाती है, इसलिए नहीं कि वह अपनी असीम बुद्धि से कैसे निर्णय लेता है - अपनी उदारता को बांटने के लिए। ऐसे और भी कई कारण हैं जिनकी वजह से ईश्वर हमारी पूजा के योग्य है (जिसमें प्रेम, उसके उपकार के लिए आभारी होना आदि शामिल है), हालांकि इस विशिष्ट विषय की चर्चा एक अन्य लेख में की जाएगी।
क्या ईश्वर को हमारी पूजा की जरूरत है?
यह सामान्य प्रश्न इस्लामी परंपरा में ईश्वर के बारे मे गलतफहमी होने के कारण पूछा जाता है। क़ुरआन और पैगंबर की बातें स्पष्ट रूप से बताती हैं कि ईश्वर श्रेष्ठ है और उसे किसी भी चीज की आवश्यकता नही; दूसरे शब्दों मे कहें तो वह बिल्कुल स्वतंत्र है:
"वास्तव में, ईश्वर सांसारिक आवश्यकताओं से मुक्त है।" (क़ुरआन 29:6)
इसलिए ईश्वर को हमारी पूजा की बिल्कुल भी आवश्यकता नही है। उसे हमारी पूजा से कुछ मिलने वाला नही, और यदि हम पूजा न करें तो भी ईश्वर का कुछ बिगड़ने वाला नही। हम ईश्वर की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि ईश्वर ने अपनी बुद्धि और दया से हमें इसी तरह से बनाया है। ईश्वर ने पूजा को दोनों सांसारिक और आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे लिए अच्छा और लाभकारी बनाया है।
उसने हमें उसकी पूजा करने के लिए क्यों पैदा किया?
इस उत्तर से सामान्यत: यह प्रश्न निकलता है कि ईश्वर ने हमें उसकी पूजा करने के लिए क्यों पैदा किया? ईश्वर बहुत ही अच्छा है, और इसलिए उसके न केवल कार्य अच्छे हैं बल्कि ये उसके स्वभाव की अभिव्यक्ति हैं। इसके अलावा, ईश्वर अच्छाई को पसंद करता है। तथ्य यह है कि ईश्वर ने समझदार जीवों का निर्माण किया है जो स्वतंत्र रूप से उसकी पूजा करना और अच्छे कर्म करना चुनते हैं, कुछ तो इस हद तक अच्छे कर्म करते हैं जैसा पैगंबर किया करते थे, और फिर अनंत प्रेम और साहचर्य के लिए ईश्वर की उपस्थिति में अनन्त जीवन दिया जाता है, यह अब तक बताई गई कहानियों में सबसे बड़ी है। चूंकि ईश्वर सभी से प्यार करता है, इससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने इस कहानी को वास्तविकता क्यों बनाया। संक्षेप में, ईश्वर ने हमें उसकी पूजा करने के लिए बनाया क्योंकि वह हमारा भला चाहता है; दूसरे शब्दों में कहें तो वह चाहता है कि हम स्वर्ग जाएं। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि जो लोग स्वर्ग जायेंगे उन्हें उनकी दया का अनुभव करने के लिए बनाया गया है:[1]
"यदि तुम्हारा ईश्वर चाहता तो वह सब लोगों को एक ही समुदाय बना देता, लेकिन उनके बीच मतभेद बना रहता, सिवाय उनके जिन पर तुम्हारे ईश्वर की दया होती, क्योंकि उसने उन्हें इस तरह से पैदा किया है।" (क़ुरआन 11:118-119)
ईश्वर ने अनिवार्य रूप से हमें उसकी पूजा करने के लिए पैदा किया। उनके सिद्ध नाम और गुण स्वयं खुद को प्रकट करते है। एक कलाकार अनिवार्य रूप से कला का काम करता है क्योंकि उसमें कलात्मक होने का गुण होता है। बड़े कारण से, ईश्वर ने अनिवार्य रूप से हमें उसकी पूजा करने के लिए पैदा किया क्योंकि वह पूजा के योग्य है। यह अनिवार्यता आवश्यकता पर आधारित नहीं है, बल्कि ईश्वर के नामों और गुणों की एक आवश्यक अभिव्यक्ति है।
इस प्रश्न का उत्तर देने का दूसरा तरीका यह समझना है कि हमारा ज्ञान अपूर्ण और सीमित है, इसलिए हम कभी भी ईश्वर के असीमित ज्ञान को समझ नही पाएंगे। जैसा कि पहले बताया गया है, अगर हम ईश्वर के सभी ज्ञान को समझ लेंगे तो इसका मतलब होगा कि हम ईश्वर बन जाएंगे या ईश्वर हमारे जैसे हो जाएंगे। ये दोनों होना असंभव हैं। इसलिए इस प्रश्न का कोई उत्तर न होना ईश्वर के ज्ञान की श्रेष्ठता को दर्शाता है। संक्षेप में, उसने हमें अपनी अनन्त बुद्धि से उसकी पूजा करने के लिए बनाया है, लेकिन हम नहीं समझ सकते कि क्यों।
इस प्रश्न को समझने का एक व्यावहारिक तरीका निम्नलिखित दृष्टांत में बताया गया है। कल्पना कीजिए कि आप एक चट्टान के किनारे पर थे और किसी ने आपको नीचे समुद्र में धकेल दिया। समुद्र मे शार्क भी हैं। हालांकि, जिसने आपको धक्का दिया, उसने आपको एक जलरोधक नक्शा और एक ऑक्सीजन टैंक दिया ताकि आप सुरक्षित क्षेत्रों से होते हुए एक सुंदर उष्णकटिबंधीय द्वीप तक पहुंच सकें जहां आप हमेशा के लिए आनंद से रहेंगे। यदि आप बुद्धिमान हैं तो आप नक्शे का उपयोग करके द्वीप की सुरक्षित जगह तक पहुंच सकते हैं। हालांकि, यदि आप इस सवाल पर अटके रहेंगे की मुझे धक्का क्यों दिया? तो शायद शार्क आपको खा जायेगा। मुसलमानों के लिए क़ुरआन और पैगैंबर की बातें नक्शा और ऑक्सीजन टैंक हैं। वे हमें जीवन जीने का सही तरीका बताते हैं। हमें ईश्वर को जानना, उनसे प्रेम करना और उनकी आज्ञा का पालन करना है, और सभी पूजा को केवल ईश्वर को समर्पित करना है। मूल रूप से हमारे पास इस संदेश को नज़रअंदाज़ करके अपने आप को नुकसान पहुंचाने या इसे स्वीकार करके ईश्वर के प्रेम और दया को अपनाने का विकल्प है।
अंतिम बार 30 जनवरी 2017 को अपडेट किया गया। मेरी पुस्तक "द डिवाइन रियलिटी: गॉड, इस्लाम एंड द मिराज ऑफ एथीज़्म" से लिया और रूपांतरित किया गया। आप यह किताब यहां खरीद सकते हैं।
फुटनोट:
[1] महली, जे. और अस-सुयुति जे. (2001) तफ़सीर अल-जलालैन। तीसरा संस्करण। काहिरा: दार अल-हदीस, पृष्ठ 302। आप एक ऑनलाइन प्रति यहां देख सकते हैं: https://ia800205.us.archive.org/1/items/FP158160/158160.pdf [1 अक्टूबर 2016 को देखा गया]।
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