इब्राहिम की कहानी (7 का भाग 7): एक पुण्यस्थान का निर्माण
विवरण: इब्राहीम फिर से अपने बेटे इस्माईल से मिलने जाते हैं, लेकिन इस बार एक महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए, पूजा के घर का निर्माण और पूरी मानवता के लिए एक पुण्यस्थान का निर्माण करने के लिए।
- द्वारा IslamReligion.com
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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इब्राहीम और इस्माईल काबा का निर्माण करते हैं
कई वर्षों के अलगाव के बाद, पिता और पुत्र फिर से मिले। इस यात्रा पर दोनों ने स्थायी पुण्यस्थान के रूप में ईश्वर की आज्ञा पर काबा का निर्माण किया; ईश्वर की पूजा की जगह। यहीं पर, इसी बंजर रेगिस्तान में, जहां इब्राहिम ने हाजिरा और इस्माईल को पहले छोड़ दिया था, उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह इसे एक ऐसा स्थान बना दे जहां वे मूर्ति पूजा से मुक्त होकर प्रार्थना स्थापित करें।
"हे मेरे पालनहार! इस नगर (मक्का) को शान्ति का नगर बना दे और मुझे तथा मेरे पुत्रों को मूर्ति-पूजा से बचा ले। मेरे पालनहार! इन मूर्तियों ने बहुत-से लोगों को कुपथ किया है, अतः जो मेरा अनुयायी हो, वही मेरा है और जो मेरी अवज्ञा करे, तो वास्तव में, तू अति क्षमाशील, दयावान् है। हमारे पालनहार! मैंने अपनी कुछ संतान मरुस्थल की एक वादी (उपत्यका) में तेरे सम्मानित घर (काबा) के पास बसा दी है, ताकि वे प्रार्थना की स्थापना करें। अतः लोगों के दिलों को उनकी ओर आकर्षित कर दे और उन्हें जीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ हों। हमारे पालनहार! तू जानता है, जो हम छुपाते और जो व्यक्त करते हैं और ईश्वर से कुछ छुपा नहीं रहता, धरती में और न आकाशों में। सब प्रशंसा उस ईश्वर के लिए है, जिसने मुझे बुढ़ापे में (दो पुत्र) इस्माईल और इस्ह़ाक़ प्रदान किये। वास्तव में, मेरा पालनहार प्रार्थना अवश्य सुनने वाला है। मेरे पालनहार! मुझे प्रार्थना की स्थापना करने वाला बना दे तथा मेरी संतान को। हे मेरे पालनहर! और मेरी प्रार्थना स्वीकार कर। हे मेरे पालनहार! मूझे क्षमा कर दे तथा मेरे माता-पिता और विश्वासियों को, जिस दिन ह़िसाब लिया जायेगा।" (क़ुरआन 14:35-41)
अब वर्षों बाद, इब्राहीम फिर से अपने बेटे इस्माईल से मिलने के बाद, पूजा के केंद्र, ईश्वर के सम्मानित घर की स्थापना करने वाले थे, लोग प्रार्थना करते समय किस दिशा में अपना चेहरा रखेंगे, और इसे तीर्थस्थल बना देंगे। क़ुरआन में काबा की पवित्रता और उसके निर्माण के उद्देश्य का वर्णन करने वाले कई खूबसूरत छंद है।
"और जब हमने निश्चित कर दिया इब्राहीम के लिए इस घर (काबा) का स्थान (इस प्रतिबंध के साथ) कि साझी न बनाना मेरा किसी चीज़ को तथा पवित्र रखना मेरे घर को परिकर्मा करने, खड़े होने, रुकूअ (झुकने) और सज्दा करने वालों के लिए। और घोषणा कर दो लोगों में तीर्थ यात्रा (ह़ज) की, वे आयेंगे तेरे पास पैदल तथा प्रत्येक दुबली-पतली सवारियों पर, जो प्रत्येक दूरस्थ मार्ग से आयेंगी। (क़ुरआन 22:26-27)
"और जब हमने इस घर (अर्थातःकाबा) को लोगों के लिए बार-बार आने का केंद्र तथा शांति स्थल निर्धारित कर दिया तथा ये आदेश दे दिया कि 'मक़ामे इब्राहीम' को प्रार्थना का स्थान बना लो तथा इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) तथा एतिकाफ़ करने वालों और सज्दा तथा रुकू करने वालों के लिए पवित्र रखो।" (क़ुरआन 2:125)
मार्गदर्शन और आशीर्वाद के उद्देश्य के लिए काबा पूरी मानवता के लिए बना पूजा का पहला स्थान है:
"निःसंदेह पहला घर, जो मानव के लिए (ईश्वर की वंदना का केंद्र) बनाया गया, वह वही है, जो मक्का में है, जो शुभ तथा संसार वासियों के लिए मार्गदर्शन है। उसमें खुली निशानियाँ हैं, जिनमें मक़ामे इब्राहीम है तथा जो कोई उस की सीमा में प्रवेश कर गया, तो वह शांत (सुरक्षित) हो गया। तथा ईश्वर के लिए लोगों पर इस घर की तीर्थ यात्रा अनिवार्य है, जो उस तक राह पा सकता हो।" (क़ुरआन 3:96-97)
पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा:
"वास्तव में यह स्थान ईश्वर के द्वारा पवित्र किया गया है जिस दिन उसने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और यह न्याय के दिन तक ऐसा ही रहेगा।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
इब्राहीम की प्रार्थना
वास्तव में, बाद की सभी पीढ़ियों के लिए पवित्र स्थान का निर्माण ईश्वर में विश्वास करने वाले लोगो द्वारा की जा सकने वाली पूजा के सर्वोत्तम रूपों में से एक था। उन्होंने अपने निवेदन के दौरान ईश्वर का आह्वान किया:
"हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है। हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज की) विधियाँ बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में, तू अति क्षमी, दयावान् है।! (क़ुरआन 2:127-128)
"और (याद करो) जब इब्राहीम ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस छेत्र को शांति का नगर बना दे तथा इसके वासियों को, जो उनमें से ईश्वर और अंतिम दिन (प्रलय) पर विश्वास रखे ..." (क़ुरआन 2:126)
इब्राहीम ने यह भी प्रार्थना की कि इस्माईल की संतान से एक पैगंबर उठाया जाए, जो इस भूमि का निवासी होगा, क्योंकि इसहाक की संतान कनान की भूमि में निवास करेगी।
"हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक दूत भेज, जो उन्हें तेरे छंद सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुरआन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।" (क़ुरआन 2:129)
एक दूत के लिए इब्राहिम की प्रार्थना का उत्तर कई हजार साल बाद दिया गया, जब ईश्वर ने अरब के लोगो के बीच पैगंबर मुहम्मद को भेजा, और जैसा कि मक्का को सभी मानवता के लिए एक अभयारण्य और पूजा के घर के रूप में चुना गया था, उसी तरह मक्का के पैगंबर को भी सभी मनुष्यों के लिए भेजा गया था।
यह इब्राहीम के जीवन का यह शिखर था, जो उसके उद्देश्य को पूरा कर रहा था: एक सच्चे ईश्वर की पूजा के लिए किसी भी चुनी हुई जाति या रंग के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए पूजा स्थल का निर्माण। इस घर की स्थापना के माध्यम से यह गारंटी थी कि ईश्वर, जिस ईश्वर को उन्होंने बुलाया और जिनके लिए उन्होंने अंतहीन बलिदान दिया, उनकी पूजा हमेशा के लिए की जाएगी, उनके साथ किसी अन्य ईश्वर की संगति के बिना। वास्तव में यह किसी भी इंसान पर दिए गए सबसे महान उपकारों में से एक था।
इब्राहिम और हज तीर्थयात्रा
हर साल, दुनिया भर के मुसलमान दुनिया के सभी क्षेत्रों से इकट्ठा होते हैं इब्राहीम की प्रार्थना का जवाब और तीर्थयात्रा के लिए। इस संस्कार को हज कहा जाता है, और यह ईश्वर के प्रिय सेवक इब्राहिम और उनके परिवार की कई घटनाओं की याद दिलाता है। काबा की परिक्रमा करने के बाद, एक मुसलमान इब्राहीम के स्थानक के पीछे प्रार्थना करता है, जिस पत्थर पर इब्राहीम काबा बनाने के लिए खड़े थे। प्रार्थना के बाद, एक मुसलमान उसी कुएं से पानी पीता है, जिसे ज़मज़म का पानी कहा जाता है, जो इब्राहीम और हाजिरा की प्रार्थना के जवाब में बना था, जिससे इस्माईल और हाजिरा का भरण-पोषण होता था, और भूमि के निवास का कारण था। सफा और मारवाह के बीच चलने की रस्म पानी के लिए हाजिरा की बेताब खोज की याद दिलाती है, जब वह और उसका बच्चा मक्का में अकेले थे। हज के दौरान मीना में एक जानवर की कुर्बानी, और दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा अपनी ही भूमि में, इब्राहीम की ईश्वर की खातिर अपने बेटे को बलिदान करने की इच्छा के बाद शुरू हुआ। अंत में, मीना में पत्थर के खंभों पर पत्थर मारना इब्राहीम को इस्माईल के बलिदान करने से रोकने के लिए शैतानी प्रलोभनों को अस्वीकार करने का उदाहरण है।
'ईश्वर का प्रिय सेवक' जिसके बारे में ईश्वर ने कहा, "मैं तुम्हें राष्ट्रों का प्रमुख बनाऊंगा,"[1] फिलिस्तीन लौट आये और वहीं मर गये।
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