इब्राहिम की कहानी (7 का भाग 3): मूर्ति तोड़ना

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:
A- A A+

विवरण: इब्राहीम अपने लोगों की मूर्तियों को नष्ट कर देते हैं ताकि उन्हें उनकी उपासना की निरर्थकता साबित कर सके।

  • द्वारा Imam Mufti
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
  • मुद्रित: 2
  • देखा गया: 12,133 (दैनिक औसत: 11)
  • रेटिंग: अभी तक नहीं
  • द्वारा रेटेड: 0
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0
खराब श्रेष्ठ

फिर वह समय आया जब प्रचार के साथ-साथ शारीरिक क्रिया भी करनी पड़ी। इब्राहीम ने मूर्तिपूजा के खिलाफ एक साहसिक और निर्णायक प्रहार की योजना बनाई। क़ुरआन में इसका वर्णन यहूदी-ईसाई परंपराओं में वर्णन की तुलना में थोड़ा अलग है, जैसा कि वे कहते हैं कि इब्राहिम ने अपने पिता की व्यक्तिगत मूर्तियों को नष्ट कर दिया था। [1] क़ुरआन बताता है कि उसने एक धार्मिक वेदी पर रखी अपने लोगों की मूर्तियों को नष्ट कर दिया। इब्राहीम ने मूर्तियों पर अपनी योजना का संकेत दिया था:

"तथा ईश्वर की शपथ! मैं अवश्य चाल चलूँगा तुम्हारी मूर्तियों के साथ, इसके पश्चात् कि तुम चले जाओ।" (क़ुरआन 21:57)

यह एक धार्मिक त्योहार का समय था, शायद सिन को समर्पित, जिसके लिए वहां के लोगो ने शहर से दूर चले गए। इब्राहीम को उत्सव में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उन्होंने जाने से मना कर दिया था,

"और उसने सितारों पर एक नज़र डाली। फिर कहा: 'देखो! मैं बीमार महसूस कर रहा हूँ!"

इसलिए जब उसके साथी उसे छोड़ कर चले गए, तो यह उसका अवसर बन गया। जैसे ही मंदिर सुनसान था, इब्राहीम वहां गया और सोने की परत वाली लकड़ी की मूर्तियों के पास पहुंचा, जिसमें याजकों द्वारा उनके सामने विस्तृत भोजन छोड़ा गया था। इब्राहीम ने अविश्वास में उनका मज़ाक उड़ाया:

"फिर वह उनके देवताओं की तरफ मुड़ा और कहा, 'क्या तुम नहीं खाओगे? तुम्हें क्या तकलीफ है जो तुम नहीं बोलते हो?'"

ऐसा क्या था जिससे मनुष्य अपने ही बनाये देवताओं की पूजा करता था?

"तब उसने अपने दाहिने हाथ से प्रहार किया और तोड़ना शुरू कर दिया।"

क़ुरआन हमें बताता है:

"उसने उन के प्रधान को छोड़ सब को टुकड़े-टुकड़े कर दिया।"

मंदिर के पुजारी जब लौटे तो मंदिर की बर्बादी और तोड़फोड़ को देखकर हैरान रह गए। वे सोच रहे थे कि उनकी मूर्तियों के साथ ऐसा कौन कर सकता है। तभी किसी ने इब्राहीम के नाम लिया, यह समझाते हुए कि वह उनके बारे में बुरा बोलता था। जब उन्होंने उसे अपने सामने बुलाया, तब तो इब्राहीम ने उन्हें उनकी मूर्खता बताई:

"उसने कहा: 'तुम उसकी पूजा करते हो जिसे तुम खुद बनाते हो जब ईश्वर ने तुम्हें बनाया है और जो तुम क्या बनाते हो?'"

उनका गुस्सा बढ़ रहा था; वह उसका उपदेश नही सुनना चाहते थे, वे सीधे मुद्दे पर पहुंचे:

"ऐ इब्राहीम, क्या तुमने ही हमारे देवताओं के साथ ऐसा किया है?"

लेकिन इब्राहीम ने सबसे बड़ी मूर्ति को एक वजह से छोड़ दिया था:

"उसने कहा: 'लेकिन यह, उनके प्रमुख ने किया है। तो उनसे सवाल करो, यदि वे बोल सकते हैं!"

जब इब्राहीम ने उन्हें ऐसी चुनौती दी, तो वे असमंजस में पड़ गए। उन्होंने एक-दूसरे पर मूर्तियों की रखवाली ना करने का आरोप लगाया और उसकी आंखो में न देखते हुए कहा:

"वास्तव में आप अच्छी तरह से जानते हैं कि ये नहीं बोलते हैं!"

इसलिए इब्राहीम ने अपनी बात पर जोर दिया।

"उसने कहा: 'तो उसके बजाय अपनी पूजा करो, जो आपको कुछ भी लाभ नहीं दे सकता है, ना ही आपको नुकसान पहुंचा सकता है? तो हमला करो उस पर और उन सभी पर जिसकी तुम ईश्वर के सिवा पूजा करते हो! क्या तुमको कोई समझ नहीं है?'"

आरोप लगाने वाले खुद आरोपी बन गए थे। उन पर तार्किक असंगति का आरोप लगाया गया था, और इसलिए उनके पास इब्राहिम का कोई जवाब नही था। क्योंकि इब्राहीम का तर्क अचूक था, उनकी प्रतिक्रिया क्रोध और रोष थी, और उन्होंने इब्राहीम को जिंदा जलाने का दंड दिया,

"उसके लिए एक भवन बनाओ और उसे भीषण आग में झोंक दो।"

शहरवासियों ने आग के लिए लकड़ी इकट्ठा करने में मदद की, जब तक कि यह बहुत बड़ी आग न बन गई। युवा इब्राहीम ने दुनिया के ईश्वर द्वारा उसके लिए चुने गए भाग्य के प्रति समर्पण कर दिया। उसने विश्वास नहीं खोया, बल्कि परीक्षण ने उसे मजबूत बना दिया। इब्राहीम इस कोमल उम्र में भी आग की लपटों के सामने नहीं झुका; बल्कि इसमें प्रवेश करने से पहले उनके अंतिम शब्द थे,

"ईश्वर मेरे लिए पर्याप्त है और वह मामलों का सबसे अच्छा निपटानकर्ता है।" (सहीह अल बुखारी)

यहां एक बार फिर इब्राहीम का एक उदाहरण है जो उन परीक्षाओं के लिए सही साबित हुआ जिनका उन्होंने सामना किया। सच्चे ईश्वर में उनके विश्वास का परीक्षण यहां किया गया था, और उन्होंने यह साबित कर दिया कि वह अपने अस्तित्व को ईश्वर की पुकार के सामने समर्पित करने के लिए तैयार थे। उनके इस विश्वास का प्रमाण उनके कार्यों से मिलता है।

ईश्वर ने यह नहीं चाहा था कि यह इब्राहीम का भाग्य हो, क्योंकि उसके आगे एक महान लक्ष्य था। उन्हें मानवता के लिए जाने वाले कुछ महानतम पैगंबरो का पिता बनना था। ईश्वर ने इब्राहीम को उसके और उसके लोगों के लिए एक निशानी के रूप में बचाया।

"हमने (ईश्वर) कहाः हे अग्नि! तू शीतल तथा शान्ति बन जा, इब्राहीम पर। और उन्होंने उसके साथ बुराई चाही, तो हमने उन्हीं को क्षतिग्रस्त कर दिया।"

इस प्रकार इब्राहीम सही सलामत आग से बच निकले। लोगो ने अपने देवताओं के लिए उनसे बदला लेने की कोशिश की, लेकिन अंत में वे और उनकी मूर्तियाँ अपमानित हुईं।



फुटनोट:

[1] तल्मूड: चयन, एच. पोलानो। (http://www.sacred-texts.com/jud/pol/index.htm).

खराब श्रेष्ठ

इस लेख के भाग

सभी भागो को एक साथ देखें

टिप्पणी करें

  • (जनता को नहीं दिखाया गया)

  • आपकी टिप्पणी की समीक्षा की जाएगी और 24 घंटे के अंदर इसे प्रकाशित किया जाना चाहिए।

    तारांकित (*) स्थान भरना आवश्यक है।

इसी श्रेणी के अन्य लेख

सर्वाधिक देखा गया

प्रतिदिन
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
कुल
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

संपादक की पसंद

(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सूची सामग्री

आपके अंतिम बार देखने के बाद से
यह सूची अभी खाली है।
सभी तिथि अनुसार
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सबसे लोकप्रिय

सर्वाधिक रेटिंग दिया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
सर्वाधिक ईमेल किया गया
सर्वाधिक प्रिंट किया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
इस पर सर्वाधिक टिप्पणी की गई
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

आपका पसंदीदा

आपकी पसंदीदा सूची खाली है। आप लेख टूल का उपयोग करके इस सूची में लेख डाल सकते हैं।

आपका इतिहास

आपकी इतिहास सूची खाली है।

Minimize chat