क़ुरआन का संरक्षण (2 का भाग 1): कंठस्थ करना

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:
A- A A+

विवरण: मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) के समय में क़ुरआन को कंठस्थ करना और आज लाखों मुसलमानों द्वारा उसको कंठस्थ करना।

  • द्वारा iiie.net (edited by IslamReligion.com)
  • पर प्रकाशित 08 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 31 Aug 2024
  • मुद्रित: 2
  • देखा गया: 11,492 (दैनिक औसत: 10)
  • रेटिंग: अभी तक नहीं
  • द्वारा रेटेड: 0
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0
खराब श्रेष्ठ

Preservation_of_the_Quran_(part_1_of_2)_001.jpgमुसलमानों का धार्मिक ग्रंथ क़ुरआन पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) को अरबी में देवदूत जिब्रईल के माध्यम से दिया गया था। रहस्योद्घाटन तेईस वर्षों की अवधि में, कभी-कभी संक्षिप्त छंदों में और कभी-कभी लंबे अध्यायों में आया था।[1]

क़ुरआन ("पढ़ना" या "सुनाना") पैगंबर मुहम्मद के रिकॉर्ड किए गए कथनों और कर्मों (सुन्नत) से अलग है, जिसे इसके बजाय साहित्य की एक अलग किताब में संरक्षित किया गया है जिसे सामूहिक रूप से "हदीस" ("खबर"; "रिपोर्ट"; या "वर्णन") कहा जाता है।

रहस्योद्घाटन मिलने के बाद पैगंबर सुने गए शब्दों को बिलकुल वैसे है सटीक क्रम में पढ़कर संदेश देने के काम में लग गए। यह इससे साबित होता है कि इसमें ईश्वर के वह वचन भी शामिल हैं जो विशेष रूप से उनके लिए निर्देशित किए गए थे, उदाहरण के लिए: "क़ुल" ("कह दो [लोगों को, ऐ मुहम्मद]")। क़ुरआन की लयबद्ध शैली और वाक्पटु अभिव्यक्ति इसे याद करना आसान बनाती है। वास्तव में ईश्वर इसे संरक्षण और स्मरण के लिए आवश्यक गुणों में से एक बताता है (क़ुरआन 44:58; 54:17, 22, 32, 40), विशेष रूप से अरब समाज में जो कविता के लंबे टुकड़ों के याद करने पर गर्व करता था। माइकल ज़्वेटलर ने नोट किया कि:

"प्राचीन समय में जब लेखन का बहुत कम उपयोग किया जाता था, उस समय स्मृति और मौखिक संचरण का प्रयोग किया जाता था और इसे एक हद तक मजबूत किया जाता था जो अब लगभग अज्ञात है।"[2]

इस प्रकार रहस्योद्घाटन के बड़े हिस्से को पैगंबर के समुदाय में बड़ी संख्या में लोगों द्वारा आसानी से याद किया गया था।

पैगंबर ने अपने साथियों को प्रत्येक छंद याद करने और इसे दूसरों तक पहुंचाने के लिए प्रोत्साहित किया।[3] क़ुरआन को नियमित रूप से आराधना के कार्य में पढ़ा जाना भी आवश्यक था, खासकर दैनिक प्रार्थना (नमाज़) में। इन माध्यमों द्वारा रहस्योद्घाटन के कई बार-बार सुने अंश उनको सुनाए गए, उन्हें कंठस्थ कराये गए और प्रार्थना में उनका उपयोग किया गया। पैगंबर के कुछ साथियों ने पूरे क़ुरआन को शब्द बा शब्द याद किया था। उनमें ज़ैद इब्न थबित, उबै इब्न काब, मुआद इब्न जबल और अबू ज़ैद थे।[4]

न केवल क़ुरआन के शब्दों को याद किया गया, बल्कि उनका उच्चारण भी याद किया गया, जो बाद में अपने आप में एक विज्ञान बन गया जिसे तजवीद कहा जाता है। यह विज्ञान अन्य अक्षरों और शब्दों के संदर्भ में स्पष्ट करता है कि प्रत्येक अक्षर का उच्चारण कैसे किया जाना है, साथ ही साथ पूरे शब्द का। आज हम विभिन्न भाषाओं के लोगों को क़ुरआन पढ़ने में सक्षम पाते हैं जैसे कि वे अरब के ही हों और पैगंबर के समय में रह रहे हों।

इसके अलावा, क़ुरआन के क्रम को पैगंबर ने स्वयं व्यवस्थित किया था और उनके साथियों को भी पता था।[5] प्रत्येक रमजान, पैगंबर अपने कई साथियों की उपस्थिति में, देवदूत जिब्रईल के पढ़ने के बाद पूरा क़ुरआन जहां तक आया होता था उसके सटीक क्रम में दोहराते थे।[6] अपनी मृत्यु के वर्ष में उन्होंने दो बार इसको पढ़ा था।[7] जिससे प्रत्येक अध्याय में छंदों का क्रम और अध्यायों का क्रम उनके प्रत्येक उपस्थित साथी को याद हो गया था।

जैसे-जैसे उनके साथी विभिन्न आबादी वाले विभिन्न प्रांतों में फैल गए, वे दूसरों को निर्देश देने के लिए अपने याद किये पाठ को अपने साथ ले गए।[8] इस तरह एक जैसा क़ुरआन व्यापक रूप से भूमि के विशाल और विविध क्षेत्रों में कई लोगों की यादों में कायम हो गया।

वास्तव में क़ुरआन को याद रखना सदियों से एक परंपरा बन गया, जिसकी वजह से मुस्लिमों ने इसे याद करने के लिए केंद्र/स्कूल बनाये।[9] इन स्कूलों में छात्र क़ुरआन को इसके तजवीद के साथ अपने गुरुओं से सीखते और याद करते हैं, यह एक 'अटूट श्रृंखला' है जो ईश्वर के पैगंबर के समय से चली आ रही है। इसमें आमतौर पर 3 से 6 साल लगते हैं। महारत हासिल करने और इसको सुनाने के बाद ताकि कोई गलती न हो, व्यक्ति को एक औपचारिक लाइसेंस (इजाज़ा) दिया जाता है, जो यह प्रमाणित करता है कि व्यक्ति को सुनाने के नियमों में महारत हासिल है और अब वह क़ुरआन को उसी तरह सुना सकता है जैसे ईश्वर के पैगंबर मुहम्मद सुनाते थे।

Preservation_of_the_Quran_(part_1_of_2)_002.jpg

यह छवि एक लाइसेंस (इजाज़ा) की है जो क़ुरआन सुनाने में महारत हासिल करने के बाद दिया जाता है, ये क़ुरआन सुनाने वाले प्रशिक्षकों की एक अटूट श्रृंखला को प्रमाणित करता है जो इस्लाम के पैगंबर के समय से चली आ रही है। उपरोक्त छवि कुवैत के जाने-माने क़ुरआन सुनाने वाले कारी मिश्री इब्न रशीद अल-अफसी का इजाज़ा प्रमाण पत्र है, जो शेख अहमद अल-ज़ियायत ने दिए था। छवि (http://www.alafasy.com.) के सौजन्य से।

एक गैर-मुस्लिम प्राच्यविद्, ए.टी. वेल्च, लिखते हैं:

"मुसलमानों के लिए क़ुरआन सामान्य पश्चिमी अर्थों में ग्रंथ या पवित्र साहित्य से कहीं अधिक है। सदियों से अधिकांश लोगों के लिए इसका प्राथमिक महत्व इसके मौखिक रूप में रहा है, वह रूप जिसमें यह पहली बार लगभग बीस वर्षों की अवधि में मुहम्मद द्वारा अपने अनुयायियों को "सुनाने" के रूप में आया था... रहस्योद्घाटन को मुहम्मद के जीवनकाल में उनके कुछ अनुयायियों ने याद किया था, और मौखिक परंपरा जो इस प्रकार स्थापित की गई थी उसका एक निरंतर इतिहास रहा है, यह कुछ मायनों में लिखित क़ुरआन से अलग और श्रेष्ठ है... सदियों से पूरे क़ुरआन की मौखिक परंपरा को पेशेवर सुनाने वालों (कुर्रा) ने बनाए रखा है। कुछ समय पहले तक, पश्चिम में क़ुरआन के सुनाने के महत्व को शायद ही कभी पूरी तरह से सराहा गया हो।"[10]

क़ुरआन शायद एकमात्र ऐसी धार्मिक या धर्मनिरपेक्ष किताब है जिसे लाखों लोगों ने पूरी तरह से याद कर रखा है।[11] अग्रणी प्राच्यविद् केनेथ क्रैग दर्शाते हैं कि:

"... क़ुरआन सुनाने के इस तरीके का अर्थ यह है कि इसका पाठ भक्ति के एक अटूट जीवन क्रम में सदियों से चला आ रहा है। इसलिए इसे एक प्राचीन वस्तु के रूप में नहीं माना जा सकता, न ही एक अतीत के ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में। हिफ़्ज़ (क़ुरआन को याद करना) ने मुस्लिम समय के सभी अंतरालों के माध्यम से क़ुरआन को एक वर्तमान अधिकार बना दिया है और इसे हर पीढ़ी में एक मानवीय प्रचलन बना दिया है, केवल संदर्भ के लिए अपने निर्वासन की अनुमति कभी नहीं दी।“[12]



फुटनोट:

[1] मुहम्मद हमीदुल्लाह, इंट्रोडक्शन टू इस्लाम, लंदन: एमडब्ल्यूएच पब्लिशर्स, 1979, पृष्ठ 17

[2] माइकल ज़्वेटलर, दी ओरल ट्रेडिशन ऑफ क्लासिकल अरेबिक पोएट्री, ओहियो स्टेट प्रेस, 1978, पृष्ठ 14

[3] सहीह अल-बुखारी खंड 6, हदीस नंबर 546

[4]सहीह अल-बुखारी खंड 6, हदीस नंबर 525

[5] अहमद वॉन डेनफर, उलुम अल-क़ुरआन, दी इस्लामिक फाउंडेशन, यूके, 1983, पृष्ठ 41-42; आर्थर जेफ़री, मैटेरियल्स फॉर दी हिस्ट्री ऑफ दी टेक्स्ट ऑफ दी क़ुरआन, लीडेन: ब्रिल, 1937, पृष्ठ 31

[6] सहीह अल-बुखारी खंड 6, हदीस नंबर 519

[7]सहीह अल-बुखारी खंड 6, हदीस नंबर 518 और 520

[8] इब्न हिशाम, सीरह अल-नबी, काहिरा, एन.डी., खंड 1, पृष्ठ 199

[9] लबीब अस-सैद, दी रिसाईटेड क़ुरआन, मोरो बर्जर, ए. रऊफ, और बर्नार्ड वीस द्वारा अनुवादित, प्रिंसटन: दी डार्विन प्रेस, 1975, पृष्ठ 59।

[10]इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इस्लाम, 'क़ुरआन इन मुस्लिम लाइफ एंड थॉट।'

[11]विलियम ग्राहम, बियॉन्ड दी रिटेन वर्ड, यूके: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1993, पृष्ठ 80

[12]केनेथ क्रैग, दी माइंड ऑफ दी क़ुरआन, लंदन: जॉर्ज एलेन एंड अनविन, 1973, पृष्ठ 26

खराब श्रेष्ठ

इस लेख के भाग

सभी भागो को एक साथ देखें

टिप्पणी करें

  • (जनता को नहीं दिखाया गया)

  • आपकी टिप्पणी की समीक्षा की जाएगी और 24 घंटे के अंदर इसे प्रकाशित किया जाना चाहिए।

    तारांकित (*) स्थान भरना आवश्यक है।

इसी श्रेणी के अन्य लेख

सर्वाधिक देखा गया

प्रतिदिन
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
कुल
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

संपादक की पसंद

(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सूची सामग्री

आपके अंतिम बार देखने के बाद से
यह सूची अभी खाली है।
सभी तिथि अनुसार
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सबसे लोकप्रिय

सर्वाधिक रेटिंग दिया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
सर्वाधिक ईमेल किया गया
सर्वाधिक प्रिंट किया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
इस पर सर्वाधिक टिप्पणी की गई
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

आपका पसंदीदा

आपकी पसंदीदा सूची खाली है। आप लेख टूल का उपयोग करके इस सूची में लेख डाल सकते हैं।

आपका इतिहास

आपकी इतिहास सूची खाली है।

Minimize chat