स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति (2 का भाग 2): बस थोड़ा सा और
विवरण: स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति और उसके जैसे अन्य लोग ईश्वर की दया का पूरा प्रभाव महसूस करेंगे।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2013 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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पिछले लेख में हमने पैगंबर मुहम्मद की एक व्यापक परंपरा को पढ़ा था। यह मनुष्य की प्रकृति के बारे में एक छोटी कहानी है, जो स्वर्ग में प्रवेश करने वाले अंतिम व्यक्ति के बारे में एक कथा के रूप में आती है। वह एक ऐसा व्यक्ति था, जो ईश्वर की अनुमति से नर्क की आग से बाहर निकला था। पहले तो आदमी स्वर्ग और नर्क के बीच की जगह में रहने के लिए आभारी था और ईश्वर को उनकी दया और कृपा के लिए धन्यवाद दिया। हालाँकि कुछ समय बीत गया और उसने महसूस किया कि एक पेड़ ऊपर खड़ा हुआ था। उसने इसके मजबूत तने, मजबूत शाखाओं, टहनियों और पत्तियों को देखा और इसकी छाया के नीचे रहने और इसके जल स्रोत से अपनी प्यास बुझाने की लालसा की। जैसा कि कथा जारी है, हम देखते हैं कि हर बार जब ईश्वर मनुष्य को वह देता है जो वह चाहता है, तो मनुष्य कुछ और मांगता है; बस थोड़ा सा और।
यह कहानी इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि मनुष्य लगभग कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होता है, वह हमेशा कुछ और चाहता है। यद्यपि यह किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एक आश्चर्य हो सकता है जिसने चाहतों, जरूरतों और इच्छाओं के उस चक्र के बारे में कभी नहीं सोचा है, जिसमें हम में से कुछ लोग हैं, यह ईश्वर के लिए नया नहीं है। वह, ब्रह्मांड के निर्माता और पालनकर्ता हैं, जो अपने प्राणियों के स्वाभाव को अच्छी तरह से जनता है।
ईश्वर निर्माता है और उसके पास पूर्ण ज्ञान है। वह सब जानता है जो है और जो होने वाला है; वह जानता है कि क्या हो रहा है और क्या होगा। वह सब सुननेवाला सर्वज्ञ है। ईश्वर ने कहा है कि वह हमारे अपने गले की नस से ज्यादा करीब है, उसके ज्ञान से कुछ भी नहीं बचता है। हम अपने साथियों और परिवार से अपने बुरे गुणों और कामो को छिपा सकते हैं लेकिन ईश्वर सब कुछ देखता है; इतना ही नहीं, वह समझता है कि हमें क्या प्रेरित करता है और हम क्यों डरते हैं, प्यार या इच्छा। और यही कारण है कि वह लगातार क्षमा कर रहा है और हम पर अपनी दया कर रहा है। जब हमें ईश्वर की दया की आवश्यकता होती है चाहे कैसी भी स्थिति हो, हमें सिर्फ उससे मांगना होता है।
"जबकि हमने ही पैदा किया है मनुष्य को और हम जानते हैं जो विचार आते हैं उसके मन में तथा हम अधिक समीप हैं उससे उसकी प्राणनाड़ी से।" (क़ुरआन 50:16)
शब्दकोश दया को दयालु और क्षमाशील होने के स्वभाव और करुणा को प्रेरित करने वाली भावना के रूप में परिभाषित करता है। दया के लिए अरबी शब्द रहमा है और ईश्वर के दो सबसे महत्वपूर्ण नाम इस शब्द से निकले हैं, अर-रहमान - सबसे कृपालु और अर-रहीम - सबसे दयालु। ईश्वर की दया वह ईथर गुण है जो नम्रता, देखभाल, विचार, प्रेम और क्षमा का प्रतीक है। जब हम ये गुण इस दुनिया में देखते हैं, तो ये ईश्वर की रचना के प्रति ईश्वर की दया का एक मात्र प्रतिबिंब हैं। इस कहानी में हम ईश्वर की दया को उस सौम्य तरीके से प्रकट होते हुए देख सकते हैं जब वह नर्क की आग से बाहर निकलने के बाद उस अंतिम व्यक्ति के साथ व्यवहार करते हैं।
इस जगह यह ध्यान देने योग्य है कि इस आदमी ने अपने अच्छे कर्मों के माध्यम से स्वर्ग में प्रवेश नहीं किया, इसके बिलकुल विपरीत, अंत में उसने ईश्वर की दया से स्वर्ग में प्रवेश किया। यह कहा जा सकता है कि ईश्वर अपनी दया प्रदान करता है, भले ही वह मानवीय दृष्टि में वह योग्य न हो। ईश्वर ने वास्तव में वादा किया है कि जिस किसी के दिल में सच्चा विश्वास है, भले ही उसने कई पाप किए हों, वह एक दिन स्वर्ग में जायेगा। इसे और सही से समझने के लिए पैगंबर मुहम्मद ने हमें निम्नलिखित बताया है:
"जो कोई शिर्क (ईश्वर के साथ किसी को साझा करना) किए बिना मर जायेगा, वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा।"[1]
तथ्य यह है कि जिस व्यक्ति की चर्चा हो रही है उसको ले के कई लोगों को नर्क से बाहर निकाला जाएगा और स्वर्ग में लाया जाएगा, इन धन्य लोगों को कोई दुःख या संकट नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि ईश्वर हमें बताता है कि स्वर्ग आनंद का निवास है। क़ुरआन या पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह सुझाव दे कि स्वर्ग में जाने के बाद ये लोग उस सजा के कारण पछताएंगे जो उन्होंने नरक में अनुभव की थी। यह मनुष्य की ख़ुशी और आनंद से स्पष्ट होता है, जब उसने खुद को स्वर्ग और नर्क के बीच की जगह में पाया। ऐसा लगता है कि वह तुरंत ठीक हो गया है और पहले से ही भविष्य की ओर देख रहा है। पैगंबर मुहम्मद की अन्य परंपराओं से हम जानते हैं कि स्वर्ग मुसलमानों को इस दुनिया में सामना करने वाली सभी कठिनाइयों को भुला देगा, इस प्रकार यह कहना गलत नहीं है कि स्वर्ग में प्रवेश से पहले नर्क में अनुभव की गई कठिनाइयाँ भी शामिल हैं। ईश्वर के दूत (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा:
"इस दुनिया में सबसे अमीर लोगों में से, जो नर्क में जाएंगे, उन्हें पुनरुत्थान के दिन लाया जाएगा और एक बार आग में डुबोया जाएगा। तब कहा जाएगा: हे आदम के पुत्र, क्या तुमने कभी कुछ अच्छा देखा? क्या तुम्हे कभी कोई सुख मिला? वह कहेगा: ईश्वर की कसम नहीं। फिर इस दुनिया में सबसे बेसहारा लोगों में से जो स्वर्ग में प्रवेश करेंगे, उन्हें एक बार जन्नत में डुबोया जाएगा, और उनसे कहा जाएगा: ऐ आदम के पुत्र, क्या तुमने कभी कुछ बुरा देखा? क्या तुमने कभी किसी कठिनाई का अनुभव किया है? वह कहेगा: ईश्वर की कसम नहीं, मैंने कभी कुछ बुरा नहीं देखा और न ही मैंने कभी किसी कठिनाई का अनुभव किया।"[2]
यह एक और संकेत है कि स्वर्ग के आनंद में डुबकी लगाने के बाद वह पहले की सभी कठिनायों को भूल जायेगा, यहाँ तक कि नर्क में दंडित होने की कठिनाई भी। पैगंबर कहते है: "जो कोई स्वर्ग में प्रवेश करेगा वह सुख का आनंद लेगा और दुखी नहीं होगा, उसका ना तो वस्त्र पुराने होंगे और ना उसकी जवानी कभी खत्म होगी।”[3]
यह आशीर्वाद दर्शाता है कि स्वर्ग में प्रवेश करने वाले के सभी दुख मिट जायेंगे, और यह अर्थ में सामान्य है और इसमें प्रवेश करने वाले सभी लोग शामिल हैं, चाहे वे पहले नर्क में प्रवेश कर चुके हों या नहीं।
ईश्वर की दया की कोई सीमा नहीं है। पैगंबर मुहम्मद ने यह भी कहा:
"ईश्वर के पास दया के सौ हिस्से हैं, जिनमें से एक हिस्सा उन्होंने जिन्न, मनुष्यो, जानवरों और कीड़ों के बीच डाल दिया, जिसकी वजह से वे एक दूसरे के प्रति करुणामय और दयालु हैं, और जिसके माध्यम से जंगली जानवर दयालु हैं अपनी संतान के प्रति और ईश्वर ने दया के निन्यानबे अंशों को अपने पास रखा है जिससे वह पुनरुत्थान के दिन के अपने दासों पर दया करेगा।"[4]
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