स्वर्ग और नर्क में वार्तालाप (3 का भाग 1): स्वर्गदूतों से बात करना
विवरण: जब हम अपने शाश्वत निवास में प्रवेश करेंगे तो हमारे आजीवन साथी हमसे क्या कहेंगे।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 27 Jun 2022
- मुद्रित: 0
- देखा गया: 8,147
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
हम स्वर्ग और नर्क के बीच होने वाली बातचीत के बारे में लेखों की एक नई श्रृंखला के साथ शुरू करते हैं। हम यह आशा करते हैं कि जो कुछ हमें स्वर्ग और नर्क के बारे में बताया गया है, उसे याद करके हम उन घटनाओं का अनुभव और कल्पना कर सकेंगे, जब हम परलोक में अपने निवास के आमने-सामने होंगे।
ईश्वर हमें इन वार्तालापों में अंतर्दृष्टि क्यों देता है? क़ुरआन ना केवल स्वर्गीय उद्यानों और नर्क के विवरण से भरा है, बल्कि बातचीत, संवाद, प्रवचन और बौद्धिक चर्चाओं से भी भरा है। जब इसी तरह के परिदृश्यों को बार-बार दोहराया जाता है, तो यह एक संकेत है कि ईश्वर कह रहा है, "ध्यान दें!" इसलिए यह हम पर निर्भर है कि हम ऐसा ही करें - या तो स्वर्गीय उद्यान के रूप में ज्ञात आनंदमय निवास की आशा के साथ सावधानी से ध्यान दें या खुद को नर्क की आग से बचाने की कोशिश करें। सूचना को बार-बार दोहराया जाता है ताकि हम परलोक की सोंचे तथा सावधानी से सोंचे।
निम्नलिखित लेखों में हम बातचीत की कई अलग-अलग श्रेणियों को देखेंगे। स्वर्गीय उद्यानों के लोगों और नर्क की आग के लोगों के साथ स्वर्गदूतों की बातचीत, स्वर्गीय उद्यान और नर्क के लोगों के बीच उनके परिवार के सदस्यों के साथ होने वाली बातचीत, और वह वार्तालाप जो ईश्वर ने स्वर्गीय उद्यान और नर्क के लोगों के साथ की। इसके अलावा हम देखेंगे कि स्वर्गीय उद्यान और नर्क के लोग आपस में, एक दूसरे से और अपने आंतरिक संवादों के बीच क्या कहते हैं। आइए हम स्वर्गदूतों और परलोक के लोगों के बीच की बातचीत से शुरू करें।
स्वर्गदूतों के साथ बातचीत
स्वर्गदूत हमारी शुरुआत से अंत तक हमारे बीच वास करते हैं। वे भ्रूण में आत्माओं को डालने का काम करते हैं, वे हमारे अच्छे और बुरे कर्मों को लिखते हैं और वे मृत्यु के समय हमारे शरीर से आत्माओं को निकालते हैं। हमारी मृत्यु के बाद, हमारे शाश्वत निवास में प्रवेश करने पर, वे हमारे साथ होंगे और हम उनके साथ बातचीत कर सकेंगे।
स्वर्गीय उद्यान के लोग
जिन लोगों ने प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्य के साथ अपना जीवन व्यतीत किया है, और कठिनाई और सहजता के समय में धर्मी होने का प्रयास किया है, उन लोगों का शाश्वत निवास वह स्वर्गीय उद्यान है जिसे जन्नत कहते हैं। जो लोग अनंत काल तक स्वर्गीय उद्यानों में जीवन बिताएंगे, वो अपने नए घर में प्रवेश करेंगे तो स्वर्गदूत उनका अभिवादन करेंगे। ये स्वर्गीय वाटिका के द्वारपाल हैं और वे कहेंगे, "अपने धैर्य के कारण यहां शांति से प्रवेश करो!" स्वर्गीय उद्यान शाश्वत शांति और पूर्ण संतुष्टि का स्थान है।
"तथा भेज दिये जायेंगे, जो लोग डरते रहे अपने पालनहार से, स्वर्ग की ओर झुण्ड बनाकर। यहाँतक कि जब वे आ जायेंगे उसके पास तथा खोल दिये जायेंगे उसके द्वार और कहेंगे उनसे उसके रक्षकः सलाम है तुमपर, तुम प्रसन्न रहो। तुम प्रवेश कर जाओ उसमें, सदावासी होकर।" (क़ुरआन 39:73)
उनके दिल से चोट या दर्द के सभी भाव दूर हो जाएंगे। वे ईश्वर की स्तुति करते हुए स्वर्गदूतों को उत्तर देंगे, और बातचीत जारी रहेगी।
“…सब प्रशंसा उस ईश्वर की है, जिसने हमें इसकी राह दिखाई और यदि ईश्वर हमें मार्गदर्शन न देता, तो हमें मार्गदर्शन न मिलता। हमारे पालनहार के दूत सत्य लेकर आये तथा उन्हें पुकारा जायेगा कि इस स्वर्ग के अधिकारी तुम अपने सत्कर्मों के कारण हुए हो।" (क़ुरआन 7:43)
नर्क की आग के लोग
नर्क की आग के लोगों और स्वर्गदूतों के बीच होने वाली बातचीत पूरी तरह से अलग होगी। नर्क के निवासियों को एक पूरी तरह से अलग अनुभव होगा। अपने अनन्त निवास में प्रवेश करने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा करने के बजाय, नर्क के लिए नियत लोगों को आग के प्रभारी स्वर्गदूत एकत्रित करेंगे और घसीटेंगे। जब लोगों को उसमें डाला जाएगा, तो स्वर्गदूत कहेंगे, "क्या तुम्हारे पास कोई चेतावनी देने वाला नहीं आया था?"
प्रतीत होगा कि फट पड़ेगी रोष (क्रोध) से, जब-जब फेंका जायेगा उसमें कोई समूह तो प्रश्न करेंगे उनसे उसके प्रहरीः क्या नहीं आया तुम्हारे पास कोई सावधान करने वाला (दूत)? वह कहेंगेः हाँ हमारे पास आया सावधान करने वाला। पर हमने झुठला दिया और कहा कि नहीं उतारा है ईश्वर ने कुछ। तुम ही बड़े कुपथ में हो। तथा वह कहेंगेः यदि हमने सुना और समझा होता तो नर्क के वासियों में न होते!" (क़ुरआन 67:8-10)
हालांकि यह पहली बार नहीं होगा जब आग के ये निवासी स्वर्गदूतों से बातचीत करेंगे। जब मृत्यु के दूत और उनके सहायक ऐसे लोगों की आत्माओं को निकालने के लिए इकट्ठे होंगे, तो वे स्पष्ट रूप से पूछेंगे, ईश्वर के अलावा तुम जिसे पूजते थे वो कहां है? क्योंकि व्यक्ति के जीवन के इस चरण में उसकी मूर्तियाँ स्पष्ट रूप से अनुपस्थित रहेगी।
…जिस समय हमारे दूत (मृत्यु का दूत और उसके सहायक) उनके प्राण निकालने के लिए आयेंगे, तो उनसे कहेंगे कि वे कहाँ हैं, जिन्हें तुम ईश्वर के सिवा पुकारते थे? वे कहेंगे कि वे तो हमसे खो गये तथा अपने ही विरूध्द साक्षी (गवाह) बन जायेंगे कि वस्तुतः वे अविश्वासी थे। (क़ुरआन 7:37)
कुछ समय बाद नर्क के निवासी सभी आशा खोने लगेंगे। वे ईश्वर को पुकारेंगे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलेगा, इसलिए वे स्वर्गदूतों, द्वारपालों से भीख मांगेंगे। वो कहेंगे अपने ईश्वर को पुकारो और उससे हमारी सजा को कम करने के लिए कहो। स्वर्गदूत ऐसे शब्दों के साथ जवाब देंगे जो उनकी निराशा को और बढ़ा देगा।
तथा कहेंगे जो अग्नि में हैं, नरक के रक्षकों सेः अपने पालनहार से प्रार्थना करो कि हमसे हल्की कर दे किसी दिन, कुछ यातना। वे कहेंगेः क्या नहीं आये तुम्हारे पास, तुम्हारे दूत, खुले प्रमाण लेकर? वे कहेंगेः क्यों नहीं? वे कहेंगेः तो तुम ही प्रार्थना करो! ... (क़ुरआन 40:49-50)
स्वर्ग और नर्क में वार्तालाप (3 का भाग 2): संवाद और चर्चा
विवरण: और अधिक वार्तालाप जो स्वर्ग के निवासी और नर्क के निवासी आपस में करेंगे
- द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
- मुद्रित: 0
- देखा गया: 8,357
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
जन्नत के लोगों और नर्क के लोगों के बीच बातचीत
स्वर्ग निवासी और नर्क निवासी के बीच होने वाले संवाद का ज़िक्र क़ुरआन में कई जगहों पर किया गया है। जब हम इन छंदों को पढ़ते हैं और उन पर विचार करते हैं, तो यह हम पर निर्भर है कि हम उन लोगों की निराशा से चिंतन करें और कुछ सीखने का प्रयास करें जो नरक की भयावहता का सामना करते हैं। हमें उनके डर का स्वाद चखना चाहिए और उनकी गलतियों से सीखना चाहिए। क़ुरआन में उनके बारे में पढ़ना हमें उनके दर्द का कुछ अनुभव कराता है, लेकिन इससे हम यह भी सीख सकते हैं कि हम इस गंतव्य से कितनी आसानी से बच सकते हैं।
वे स्वर्गों में होंगे। वे प्रश्न करेंगे अपराधियों से, "तुम्हें क्या चीज़ ले गयी नरक में।" वे कहेंगेः "हम नहीं थे प्रार्थना करने वालो में से। और नहीं भोजन कराते थे निर्धन को। तथा कुरेद करते थे कुरेद करने वालों के साथ। और हम झुठलाया करते थे प्रतिफल के दिन (प्रलय) को जब तक कि हमारी मौत न आ गई।” (क़ुरआन 74:40-47)
तथा स्वर्गवासी नरकवासियों को पुकारेंगे कि हमें, हमारे पालनहार ने जो वचन दिया था, उसे हमने सच पाया, तो क्या तुम्हारे पानलहार ने तुम्हें जो वचन दिया था, उसे तुमने सच पाया? वे कहेंगे कि हाँ!"... (क़ुरआन 7:44)
तथा नरकवासी स्वर्गवासियों को पुकारेंगे कि "हमपर थोड़ा पानी डाल दो अथवा जो अल्लाह ने तुम्हें प्रदान किया है, उसमें से कुछ दे दो।" वे कहेंगे कि "ईश्वर ने ये दोनों अविश्वासियों के लिए वर्जित कर दिया है।" (क़ुरआन 7: 50)
यह स्पष्ट है कि स्वर्ग में रहने वालों को दी गई आशीषों को देखने और सुनने के बाद से नर्क में रहने वालों की पीड़ा बढ़ जाती है।
स्वर्ग वालों की आपस में बातचीत
क़ुरआन में ईश्वर के वचन हमें बताते हैं कि स्वर्ग के निवासी एक दूसरे से अपने पिछले जन्मों के बारे में पूछेंगे।
“और वे (स्वर्ग वासी) सम्मुख होंगे एक-दूसरे के प्रश्न करते हुए। वे कहेंगेः इससे पूर्व हम अपने परिजनों में (ईश्वर के दंड से) डरते थे। तो ईश्वर ने उपकार किया हमपर तथा हमें सुरक्षित कर दिया तापलहरी की यातना से।" (क़ुरआन 52:25-27)
स्वर्ग के लोगों के बीच बातचीत का वर्णन करने वाले अधिकांश छंद इस बात की पुष्टि करते हैं कि वे अपने धर्मी व्यवहार को जारी रखेंगे और ईश्वर की उस आशीष के लिए धन्यवाद देंगे जो ईश्वर ने उन्हें दी है। यद्यपि वे ईश्वर के वचन को सत्य मानते थे और उसी के अनुसार व्यवहार करते थे, स्वर्ग की सर्वोच्च भव्यता उन्हें कृतज्ञता से अभिभूत कर देगी।
तथा वे कहेंगेः सब प्रशंसा उस ईश्वर के लिए हैं, जिसने दूर कर दिया हमसे शोक। वास्तव में, हमारा पालनहार अति क्षमी, गुणग्राही है। जिसने हमें उतार दिया स्थायी घर में अपने अनुग्रह से। नहीं छूएगी उसमें हमें कोई आपदा और न छूएगी उसमें कोई थकान। (क़ुरआन 35:34-35)
तथा वे कहेंगेः "सब प्रशंसा ईश्वर के लिए हैं, जिसने सच कर दिखाया हमसे अपना वचन तथा हमें उत्तराधिकारी बना दिया इस धरती का, हम रहें स्वर्ग में, जहाँ चाहें। क्या ही अच्छा है कार्यकर्ताओं का प्रतिफल!” (क़ुरआन 39:74)
नर्क के लोगों की आपस में बातचीत
जब नर्क की आग में अनंत काल बिताने के लिए नियत लोगों को आग में डाल दिया जाएगा, तो वे चौंक जाएंगे कि जिन लोगों या मूर्तियों पर उन्होंने भरोसा किया था और उनका पालन किया था, वे उनकी मदद करने में सक्षम नहीं हैं। क़ुरआन में जिन नेताओं को घमंडी कहा गया है, वे अपने कमजोर अनुयायियों के सामने स्वीकार करेंगे कि वे खुद भटक गए थे। इस प्रकार जो कोई भी उनका अनुसरण करता था, वह दया से रहित जीवन में उनका अनुसरण करता था।
और एक-दूसरे के सम्मुख होकर परस्पर प्रश्न करेंगेः कहेंगे कि "तुम हमारे पास आया करते थे दायें से (अर्थात, हमें बहुदेववाद का आदेश दिया, और हमें सच्चाई से रोक दिया)।" वे कहेंगेः "बल्कि तुम स्वयं विश्वासी न थे। तथा नहीं था हमारा तुमपर कोई अधिकार, बल्कि तुम सवंय अवज्ञाकारी थे। तो सिध्द हो गया हमपर हमारे पालनहार का कथन कि हम (यातना) चखने वाले हैं। तो हमने तुम्हें कुपथ कर दिया। हम तो स्वयं कुपथ थे।" (क़ुरआन 37:27-32)
और सब अल्लाह के सामने खुलकर आ जायेंगे, तो निर्बल लोग उनसे कहेंगे, जो बड़े बन रहे थे कि हम तुम्हारे अनुयायी थे, तो क्या तुम ईश्वर की यातना से बचाने के लिए हमारे कुछ काम आ सकोगे? वे कहेंगेः "यदि ईश्वर ने हमें मार्गदर्शन दिया होता, तो हम अवश्य तुम्हें मार्गदर्शन दिखा देते। अब तो समान है, चाहे हम अधीर हों या धैर्य से काम लें, हमारे बचने का कोई उपाय नहीं है।” (क़ुरआन 14:21)
और जब मामला तय हो जायेगा, तो यह मामला होगा कि कौन स्वर्ग के लिए नियत है और कौन नर्क के लिए नियत है, तब नर्क का सबसे कुख्यात, बदनाम वासी, शैतान स्वयं एक महान सत्य प्रकट करेगा। यह एक सच्चाई और परिदृश्य है जिसे ईश्वर ने क़ुरआन में हमारे सामने प्रकट किया, लेकिन जिसे बहुत से लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया कि वह "शैतान" झूठा था। शैतान के वादे कभी पूरे नहीं होने वाले थे, उसके वादे खोखले थे और वह खुद ईश्वर में विश्वास करता था।
जब निर्णय कर दिया जायेगा, तो शैतान कहेगा: "वास्तव में, ईश्वर ने तुम्हें सत्य वचन दिया था और मैंने तुम्हें वचन दिया, तो अपना वचन भंग कर दिया और मेरा तुमपर कोई दबाव नहीं था, परन्तु ये कि मैंने तुम्हें (अपनी ओर) बुलाया और तुमने मेरी बात स्वीकार कर ली। अतः मेरी निन्दा न करो, स्वयं अपनी निंदा करो, न मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ और न तुम मेरी सहायता कर सकते हो। वास्तव में, मैंने उसे स्वीकार कर लिया, जो इससे पहले तुमने मुझे ईश्वर का साझी बनाया था। निःसंदेह अत्याचारियों के लिए दुःखदायी यातना है।" (क़ुरआन 14:22)
स्वर्ग और नर्क में बातचीत (3 का भाग 3): और मैं आज के बाद तुम पर कभी क्रोध न करूंगा
विवरण: परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत, आंतरिक संवाद, और ईश्वर परलोक के लोगों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया देगा।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
- मुद्रित: 0
- देखा गया: 6,849
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
आंतरिक संवाद
जब मामला तय हो गया है, और नर्क के लोगों को दूर ले जाया गया होगा, और स्वर्ग के लोग बगीचे में प्रवेश कर चुके होंगे, तो लोगों का प्रत्येक समूह आपस में बात करेगा। वो अपने दुनिया के जीवन नहीं भूलेंगे और दोनों समूहों के पास अनंत काल है जिसमें वो पीछे मुड़कर देखेंगे और विश्लेषण करेंगे कि मैं पीड़ित क्यों हूं, या मैं इस विलासिता का हकदार क्यों हूं? मामला तय हो गया है, इस दुनिया के जीवन में जो कम समय बिताया गया था वह खत्म हो गया है और अनंत जीवन शुरू हो गया है।
ईश्वर उनसे कहेगाः तुम धरती में कितने वर्ष रहे?" वे कहेंगेः "हम एक दिन या दिन के कुछ भाग रहे। तो गणना करने वालों से पूछ लें।" वह (ईश्वर) कहेगाः "तुम नहीं रहे, परन्तु बहुत कम। क्या ही अच्छा होता कि तुमने पहले ही जान लिया होता!" (क़ुरआन 23:112-114)
हम जानते हैं कि स्वर्ग और नर्क दोनों के वासी एक-दूसरे से सवाल पूछेंगे, लेकिन वे खुद से क्या कहेंगे, उन्हें कैसा लगेगा, अकेला, वंचित और त्यागा हुआ? ईश्वर हमें बताता है कि वे भय में, हताशा में आहें भरेंगे। हमारे लिए कल्पना करना कठिन है लेकिन हम जानते हैं कि वे आशा छोड़ देंगे।।
"फिर जो भाग्यहीन होंगे, वही नर्क में होंगे, उन्हीं की उसमें चीख और पुकार होगी।" (क़ुरआन 11:106)
“…और तैयार कर रखी है, उनके लिए, दहकती अग्नि। वे सदावासी होंगे उसमें। नहीं पायेंगे कोई रक्षक और न कोई सहायक। जिस दिन उलट-पलट किये जायेंगे उनके मुख अग्नि में, वे कहेंगेः हमारे लिए क्या ही अच्छा होता कि हम कहा मानते ईश्वर का तथा कहा मानते उनके दूत का!" (क़ुरआन 33:64-66)
जब नर्क वासी इस बात पर विचार करेंगे कि जिन लोगों का उन्होंने इस दुनिया में अनुसरण किया, वे उनकी पीड़ा में उनकी मदद क्यों नहीं कर पा रहे हैं, यह हमारे लिए सीखने का एक सबक है। क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में हम अपने दिमाग की आंखों से पढ़ और देख सकते हैं कि हमारी अपनी स्थिति क्या हो सकती है।
जो लोग स्वर्ग में दाखिल होंगे, उनके लिए यह कितनी विषमता और खुशी की बात होगी। उन्हें ईश्वर को देखने का अत्यधिक आनंद मिलेगा, यह एक ऐसी चीज है जो नर्क के लोगों को नहीं मिलेगा। "निश्चय वे उस दिन अपने पालनहार के दर्शन से रोक दिये जायेंगे।" (क़ुरआन 83:15)
स्वर्ग के लोग और नर्क की आग के निवासी परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करते हुए
क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में ऐसे छंद कम ही हैं जो लोगों के बीच उनके शाश्वत निवास में उनके परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत को दिखाते हैं। हालांकि यह सबूत हैं कि वे वास्तव में इस दुनिया के अपने जीवन को याद रखेंगे और अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचेंगे।
“और वे (स्वर्ग वासी) सम्मुख होंगे एक-दूसरे के प्रश्न करते हुए। वे कहेंगेः "इससे पूर्व हम अपने परिजनों में (ईश्वर के दंड से) डरते थे। तो ईश्वर ने उपकार किया हमपर तथा हमें सुरक्षित कर दिया तापलहरी की यातना से। इससे पूर्व हम वंदना किया करते थे उसकी। निश्चय वह अति परोपकारी, दयावान् है।" (क़ुरआन 52:25-28)
ईश्वर और नर्क के निवासियों के बीच बातचीत
ईश्वर और नर्क के लोगों के बीच हम जो बातचीत पाते हैं, वे अधिक नहीं हैं। हम अधिक आसानी से क़ुरआन में छंद देखते हैं जहां नर्क के निवासी आपस में या स्वर्गदूतों के साथ बातचीत करते हैं जो नर्क के द्वार की रखवाली करते हैं। हालाँकि एक बातचीत है जो विचित्र है और यह हमारे दिमाग में स्पष्ट होनी चाहिए, ताकि हम इन भयानक शब्दों को कभी भी सुनने से खुद को बचा सकें। नर्क के निवासी कहेंगे:
"हमारे पालनहार! हमें इससे निकाल दे, यदि अब हम ऐसा करें, तो निश्चय हम अत्याचारी होंगे।"
वह (ईश्वर) कहेगाः "इसीमें अपमानित होकर पड़े रहो और मुझसे बात न करो!” (क़ुरआन 23:107-108)
ईश्वर और स्वर्ग के लोगों के बीच बातचीत
पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में हम ईश्वर और ईश्वर की दया से नर्क की पीड़ा से बाहर निकलने वाले अंतिम व्यक्ति के बीच एक बहुत ही मार्मिक और आनंदमय बातचीत पाते हैं। वयक्ति को स्वर्ग में आने का न्यौता दिया जायेगा, तो वह उसमें जाकर सोचेगा कि स्वर्ग भरा हुआ है। वह व्यक्ति ईश्वर के पास लौटेगा और कहेगा, "मेरे ईश्वर, मैंने स्वर्ग को भरा हुआ पाया," और ईश्वर जवाब देंगे, "जाओ और स्वर्ग में प्रवेश करो क्योंकि ये तुम्हारी दुनिया से दस गुना बेहतर है और इसमें सब कुछ है"। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "वह वही है जो स्वर्ग के लोगों के स्तर में सबसे नीचे होगा।"[1]
एक और व्यक्ति से ईश्वर पूछेगा कि क्या उसके पास वह सब कुछ है जो वह चाहता है और वह अपने ईश्वर को यह कहते हुए जवाब देगा कि "हाँ, लेकिन मुझे चीजें उगाना पसंद है।" तब वह जाकर अपने बीज बोएगा, और पलक झपकते ही वे बढ़ेंगे, पकेंगे, और काटे जाएंगे, और पहाड़ों के जैसे उसके ढेर बन जाएंगे।[2]
हम अपनी इस तीन भागो की श्रृंखला को एक बहुत ही सुंदर कहावत के साथ इस उम्मीद में समाप्त करते हैं कि हर कोई जो इस खूबसूरत बातचीत को पढ़ता या सुनता है, अपने जीवन के अंत में और उसके बाद की शुरुआत में, इस बातचीत का हिस्सा होगा।
ईश्वर स्वर्ग के लोगों से कहेगा: “हे स्वर्ग के लोगों!" वे उत्तर देंगे: "हे हमारे ईश्वर, हम यहां हैं, और सब अच्छाई तेरे हाथ में है।" ईश्वर कहेगा: “क्या तुम संतुष्ट हो? वे जवाब देंगे: "हमें संतुष्ट क्यों नहीं होना चाहिए जब आपने हमें वह दिया है जो आपने अपनी किसी अन्य रचना को नहीं दिया है।" ईश्वर कहेगा, “क्या मैं तुझे इससे भी उत्तम कुछ ना दूं?" वे कहेंगे: “ऐ हमारे पालनहार! इससे बेहतर क्या हो सकता है?" ईश्वर कहेगा: "मैं तुम्हें अपना सुख देता हूं और मैं इसके बाद कभी भी तुम पर क्रोधित नहीं होऊंगा।"[3]
टिप्पणी करें