आदम की कहानी (5 का भाग 3): वंश
विवरण: स्वर्ग में शैतान का आदम और हव्वा को धोखा देना और इससे कुछ सबक जो हम सीख सकते हैं।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2008 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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इस्लाम मूल पाप की ईसाई अवधारणा और इस धारणा को खारिज करता है कि सभी मनुष्य आदम के कार्यों के कारण पापी पैदा होते हैं। क़ुरआन में ईश्वर कहता है:
"और कोई बोझ उठाने वाला दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा" (क़ुरआन 35:18)
प्रत्येक मनुष्य अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार है और जन्म से ही शुद्ध और पाप से मुक्त है। आदम और हव्वा ने गलती की, उन्होंने ईमानदारी से पश्चाताप किया और ईश्वर ने अपने अनंत ज्ञान में उन्हें क्षमा कर दिया।
"तो दोनों ने उस वृक्ष से खा लिया, फिर उनके गुप्तांग उन दोनों के लिए खुल गये और दोनों चिपकाने लगे अपने ऊपर स्वर्ग के पत्ते और आदम अवज्ञा कर गया अपने पालनहार की और कुपथ हो गया। फिर ईश्वर ने उसे चुन लिया और उसे क्षमा कर दिया और सुपथ दिखा दिया।” (क़ुरआन 20:121-122)
मानवजाति का गलतियां करने और भूलने का एक लंबा इतिहास रहा है। फिर भी, आदम के लिए ऐसी गलती करना कैसे संभव था? वास्तविकता यह थी कि आदम को शैतान की कानाफूसी और चाल का कोई अनुभव नहीं था। आदम ने शैतान के अहंकार को देखा था, जब उसने ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करने से इनकार कर दिया था; वह जानता था कि शैतान उसका दुश्मन है, लेकिन उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि शैतान की चालों और योजनाओं का विरोध कैसे किया जाए। पैगंबर मुहम्मद ने हमें बताया:
"किसी चीज़ को जानना उसे देखने के समान नहीं है।" (सहीह मुस्लिम)
ईश्वर ने कहा:
"तो उसने (शैतान ने) उन्हें छल से भरमाया।" (क़ुरआन 7:22)
ईश्वर ने आदम की परीक्षा ली ताकि वह सीख सके और अनुभव प्राप्त कर सके। इस तरह ईश्वर ने आदम को एक कार्यवाहक और ईश्वर के पैगंबर के रूप में पृथ्वी पर उसकी भूमिका के लिए तैयार किया। इस अनुभव से, आदम ने महान सबक सीखा कि शैतान चालाक, कृतघ्न और मानवजाति का स्पष्ट दुश्मन है। आदम, हव्वा और उनके वंशजों ने सीखा कि शैतान ने उन्हें स्वर्ग से निकालवा दिया। ईश्वर की आज्ञाकारिता और शैतान के प्रति शत्रुता ही स्वर्ग जाने का एकमात्र मार्ग है।
ईश्वर ने आदम से कहा:
"तुम दोनों (आदम तथा शैतान) यहां से उतर जाओ, तुम एक-दूसरे के शत्रु हो। अब यदि आये तुम्हारे पास मेरी ओर से मार्गदर्शन, तो जो अनुपालन करेगा मेरे मार्गदर्शन का, वह कुपथ नहीं होगा और न दुर्भाग्य ग्रस्त होगा।” (क़ुरआन 20:123)
क़ुरआन हमें बताता है कि आदम ने बाद में अपने ईश्वर से कुछ शब्द प्राप्त किए; प्रार्थना करने के लिए एक प्रार्थना, जिसने ईश्वर की क्षमा का आह्वान किया। यह प्रार्थना बहुत सुंदर है और इसका उपयोग आपके पापों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगने के लिए किया जा सकता है।
"हे हमारे पालनहार! हमने अपने ऊपर अत्याचार कर लिया और यदि तू हमें क्षमा तथा हमपर दया नहीं करेगा, तो हम अवश्य ही नाश हो जायेंगे।” (क़ुरआन 7:23)
मानवजाति लगातार गलतियां और गलत काम करती रहती है, और ऐसा करके हम केवल अपना ही नुकसान करते हैं। हमारे पापों और गलतियों से ना तो ईश्वर का नुकसान हुआ है और ना ही होगा। यदि ईश्वर ने हमें क्षमा न किया और हम पर दया न करी, तो निश्चय ही हमारा नाश हो जायेगा। हमें ईश्वर की जरुरत है!
"तुम्हारे लिए धरती में रहना और एक निर्धारित समय तक जीवन का साधन है। तथा कहाः तुम उसीमें जीवित रहोगे, उसीमें मरोगे और उसीसे फिर निकाले जाओगे।" (क़ुरआन 7:24–25)
आदम और हव्वा ने स्वर्ग छोड़ दिया और पृथ्वी पर उतर आए। उनका वंश अप्रतिष्ठा का नहीं था; बल्कि यह सम्मानजनक था। अंग्रेजी भाषा में हम चीजों के एकवचन या बहुवचन होने से परिचित होते हैं; अरबी के मामले में ऐसा नहीं है। अरबी भाषा में एकवचन है, फिर एक अतिरिक्त व्याकरणिक संख्या श्रेणी है, जो दो को दर्शाती है। बहुवचन तीन और अधिक के लिए प्रयोग किया जाता है।
जब ईश्वर ने कहा: "तुम सब नीचे उतर जाओ" उसने बहुवचन के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जो यह दर्शाता है कि वह केवल आदम और हव्वा से बात नहीं कर रहा था, बल्कि वह आदम, उसकी पत्नी और उसके वंशज अर्थात मानवजाति की बात कर रहा था। हम आदम की सन्तान इस पृथ्वी के नहीं हैं; हम यहां एक अस्थायी समय के लिए हैं, जैसा कि शब्दों से संकेत मिलता है: "कुछ समय के लिए।" हम परलोक के हैं और स्वर्ग या नर्क में अपना स्थान ग्रहण करना नियति है।
चुनने की आज़ादी
यह अनुभव एक आवश्यक सबक था और इसने स्वतंत्र इच्छा को दिखाया। यदि आदम और हव्वा को पृथ्वी पर रहना था, तो उन्हें शैतान की चालों और योजनाओं से अवगत होने की आवश्यकता थी, उन्हें पाप के भयानक परिणामों, और ईश्वर की अनंत दया और क्षमा को समझने की भी आवश्यकता थी। ईश्वर जानता था कि आदम और हव्वा उस पेड़ का फल खायेंगे। वह जानता था कि शैतान उनकी मासूमियत का फायदा उठाएगा।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि, यद्यपि ईश्वर घटनाओं के घटित होने से पहले उनके परिणाम जानता है और वह इन्हे घटने देता है, ईश्वर चीजों को करने के लिए बाध्य नहीं करता है। आदम के पास स्वतंत्र इच्छा थी और उसने अपने कर्मों के परिणामों को भोगा। मानवजाति के पास स्वतंत्र इच्छा है और इस प्रकार वह ईश्वर की अवज्ञा करने के लिए स्वतंत्र है; लेकिन उसके परिणाम भी हैं। ईश्वर उन लोगों की प्रशंसा करता है जो उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं और उन्हें महान प्रतिफल देने का वादा करता है, और वह उन लोगों की निंदा करता है जो उसकी अवज्ञा करते हैं और उन्हें ऐसा करने के खिलाफ चेतावनी देते हैं।[1]
आदम और हव्वा कहां उतरे
इस विषय पर कई विवरण हैं कि आदम और हव्वा पृथ्वी पर कहां उतरे, हालांकि उनमें से कोई भी क़ुरआन या सुन्नत से नहीं आया है। हम इस प्रकार समझते हैं कि उनके उतरने का स्थान कुछ ऐसा है जिसका कोई महत्व नहीं है, और यदि हम जान भी जाएं तो इस ज्ञान का कोई लाभ नही होगा।
हालांकि हम जानते हैं कि आदम और हव्वा शुक्रवार को धरती पर उतरे थे। शुक्रवार के महत्व के बारे में हमें सूचित करने के लिए सुनाई गई एक परंपरा में, पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा:
"सबसे अच्छा दिन जिस दिन सूरज उगता है वह शुक्रवार है। इसी दिन आदम की रचना हुई और वह इसी दिन पृथ्वी पर आए।” (सहीह अल बुखारी)
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