फिलोबस, मिस्र के कॉप्टिक पादरी और मिशनरी (2 का भाग 1)
विवरण: एक पादरी जो पहले सक्रिय रूप से इस्लाम के बारे में गलत धारणाएं फैलाता था और बाद में इस्लाम में परिवर्तित हो गया (भाग 1)।
- द्वारा Ibrahim Khalil Philobus
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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अलहज इब्राहिम खलील अहमद, पूर्व में इब्राहिम खलील फिलोबस, मिस्र के एक कॉप्टिक पादरी थे जिन्होंने धर्मशास्त्र का अध्ययन किया था और प्रिंसटन विश्वविद्यालय से उच्च डिग्री हासिल की थी। उन्होंने इस्लाम का अध्ययन इसकी कमियां खोजने के लिए किया था; कमियां खोजने के बजाय, उन्होंने अपने चार बच्चों के साथ इस्लाम धर्म अपना लिया, जिनमें से एक अब पेरिस, फ्रांस में सोरबोन विश्वविद्यालय में एक शानदार प्रोफेसर है। दिलचस्प तरीके से कहते हुए, वह खुद के बारे मे यह बताते हैं:
"मेरा जन्म 13 जनवरी 1919 को अलेक्जेंड्रिया में हुआ था और जब तक मुझे अपना माध्यमिक शिक्षा प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं हुआ, तब तक मुझे अमेरिकन मिशन स्कूल भेजा गया था। 1942 में मैंने एसोसिएट यूनिवर्सिटी से अपना डिप्लोमा किया और फिर मैंने धर्मशास्त्र के विभाग में शामिल होने के लिए धार्मिक अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल की। संकाय (विभाग) में शामिल होना कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि कोई भी उम्मीदवार तब तक शामिल नहीं हो सकता था जब तक कि उसे चर्च से विशेष सिफारिश न मिली हो, और उसे कई कठिन परीक्षाएँ उत्तीर्ण करनी पड़ती थीं। धार्मिक व्यक्ति बनने के लिए मेरी योग्यता जानने के लिए कई परीक्षण पास करने के बाद मेरी सिफारिश अलेक्जेंड्रिया के अल-अत्तरीन चर्च और निचले मिस्र के एक और चर्च असेंबली द्वारा की गई थी। फिर मुझे स्नोडस चर्च असेंबली से तीसरी सिफारिश मिली जिसमें सूडान और मिस्र के पादरी शामिल थे।
स्नोडस ने 1944 में एक बोर्डिंग छात्र के रूप में धर्मशास्त्र के संकाय में मेरे प्रवेश को मंजूरी दी। वहाँ मैंने 1948 में स्नातक होने तक अमेरिकी और मिस्र के शिक्षकों के अधीन अध्ययन किया।
उन्होंने कहना जारी रखा, मुझे यरुशलम में नियुक्त किया जाता, अगर उसी साल फ़िलिस्तीन में युद्ध न छिड़ता, इसलिए मुझे ऊपरी मिस्र में असना के लिए भेजा गया। उसी वर्ष मैंने काहिरा के अमेरिकी विश्वविद्यालय में एक थीसिस के लिए पंजीकरण कराया। यह मुसलमानों के बीच मिशनरी गतिविधियों के बारे में था। इस्लाम के साथ मेरा परिचय धर्मशास्त्र के संकाय में शुरू हुआ जहां मैंने इस्लाम का अध्ययन किया और उन सभी तरीकों का भी जिससे हम मुसलमानों के विश्वास को हिला सकते थे और उनके अपने धर्म की समझ में गलत धारणाएं पैदा कर सकते थे।
1952 में मैंने संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय से एम.ए. किया और असियट में धर्मशास्त्र संकाय में एक शिक्षक के रूप में नियुक्त हुआ। मैं विभाग में इस्लाम पढ़ाता था और साथ ही उसके दुश्मनों और मिशनरियों द्वारा फैलाई गई गलत गलतफहमियों के बारे में भी बताता था। उस समय, मैंने इस्लाम के अपने अध्ययन का विस्तार करने का फैसला किया ताकि मैं केवल इस पर मिशनरियों की किताबें न पढ़ूं। मुझे अपने आप पर इतना विश्वास था कि मैं दुसरो के दृष्टिकोण को पढ़ने के लिए तैयार था। इस तरह मैंने मुस्लिम लेखकों की लिखी किताबें पढ़ना शुरू किया। मैंने क़ुरआन पढ़ने और उसका अर्थ समझने का फ़ैसला किया। यह मेरे ज्ञान के प्यार में निहित था और इस्लाम के खिलाफ और अधिक सबूत जोड़ने की मेरी इच्छा से प्रेरित था। परिणाम, हालांकि, इसके ठीक विपरीत था। मेरी स्थिति हिलने लगी और मुझे एक आंतरिक मजबूत संघर्ष का अनुभव होने लगा, और मैंने जो कुछ भी पढ़ा और लोगों को उपदेश दिया, उससे मुझे झूठ का पता चला। लेकिन मुझमें खुद का सामना करने की हिम्मत नहीं हुई और इसके बजाय इस आंतरिक संकट को दूर करने और अपना काम जारी रखने की कोशिश की।
श्रीमान खलील ने आगे कहा, 1954 में मुझे जर्मन-स्विस मिशन के महासचिव के रूप में असवान भेजा गया था। यह मेरी स्पष्ट स्थिति थी, क्योंकि मेरा असली मिशन ऊपरी मिस्र में इस्लाम के खिलाफ प्रचार करना था, खासकर मुसलमानों के बीच। उस समय असवान के केटरेक्ट होटल में एक मिशनरी सम्मेलन आयोजित किया गया था, और मुझे बोलने का अवसर दिया गया था। उस दिन मैंने इस्लाम के खिलाफ दोहराई जाने वाली सभी गलतफहमियों के बारे में बहुत ज्यादा बोल दिया; और अपने भाषण के अंत में, मुझ पर फिर से आंतरिक संकट आ गया और मैंने अपनी स्थिति को फिर से सुधारना शुरू कर दिया।
कथित संकट पर अपनी टिप्पणी जारी रखते हुए, श्रीमान खलील ने कहा, "मैंने खुद से पूछना शुरू किया: मैंने यह सब क्यों कहा जब मै जनता हूं कि मैं झूठा हूँ, क्योंकि यह सच नहीं है? सम्मेलन की समाप्ति से पहले मैंने छुट्टी ली और अकेले अपने घर चला गया। मैं पूरी तरह से हिल गया था। जैसे ही मैं फिरयाल सार्वजनिक उद्यान से गुज़रा, मैंने रेडियो पर क़ुरआन का एक छंद सुना। इसमें कहा गया था:
"(हे नबी!) कहोः मेरी ओर वह़्यी (प्रकाश्ना]) की गयी है कि ध्यान से सुना जिन्नों के एक समूह ने। फिर कहा कि हमने सुना है एक विचित्र क़ुरआन। जो दिखाता है सीधी राह, तो हमने विश्वास किया उसपर और हम कदापि साझी नहीं बनायेंगे अपने पालनहार के साथ किसी को। (क़ुरआन 72:1-2)
"तथा जब हमने सुनी मार्गदर्शन की बात, तो उसपर विश्वास किया, अब जो भी विश्वास करेगा अपने पालनहार पर, तो नहीं भय होगा उसे अधिकार हनन का और न किसी अत्याचार का।" (क़ुरआन 72:13)
उस रात मुझे बहुत राहत मिली, और जब मैं घर गया तो मैंने अपनी लाइब्रेरी में क़ुरआन पढ़ने में रात बिताई। मेरी पत्नी ने मुझसे रात भर मेरे बैठने का कारण पूछा और मैंने उससे विनती की कि मुझे अकेला छोड़ दो। मैं बहुत देर तक सोचता रहा और इस छंद पर मनन करता रहा:
"यदि हम अवतरित करते इस क़ुरआन को किसी पर्वत पर, तो आप उसे देखते कि झुका जा रहा है तथा कण-कण होता जा रहा है ..." (क़ुरआन 59:21)
और एक छंद:
"(हे नबी!) आप उनका, जो विश्वास करते हैं, सबसे कड़ा शत्रु यहूदियों तथा मिश्रणवादियों को पायेंगे और जो विश्वास करते हैं, उनके सबसे अधिक समीप आप उन्हें पायेंगे, जो अपने को ईसाई कहते हैं। ये बात इसलिए है कि उनमें उपासक तथा सन्यासी हैं और वे अभिमान नहीं करते हैं। तथा जब वे (ईसाई) उस (क़ुरआन) को सुनते हैं, जो दूत पर उतरा है, तो आप देखते हैं कि उनकी आँखें आँसू से उबल रही हैं, उस सत्य के कारण, जिसे उन्होंने पहचान लिया है। वे कहते हैं, हे हमारे पालनहार! हम विश्वास करते हैं, अतः हमें (सत्य) के साथियों में लिख ले। (तथा कहते हैं) क्या कारण है कि हम ईश्वर पर तथा इस सत्य (क़ुरआन) पर विश्वास न करें? और हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों में सम्मिलित कर देगा।'" (क़ुरआन 5:82-84)
श्रीमान खलील ने फिर पवित्र क़ुरआन से एक तीसरा उद्धरण उद्धृत किया जो कहता है:
"जो उस दूत का अनुसरण करेंगे, जो उम्मी पैगंबर हैं, जिन (के आगमन) का उल्लेख वे अपने पास तौरात तथा इंजील में पाते हैं; जो सदाचार का आदेश देंगे और दुराचार से रोकेंगे, उनके लिए स्वच्छ चीज़ों को ह़लाल (वैध) तथा मलिन चीज़ों को ह़राम (अवैध) करेंगे, उनसे उनके बोझ उतार देंगे तथा उन बंधनों को खोल देंगे, जिनमें वे जकड़े हुए होंगे। अतः जिन लोगों ने आप पर विश्वास किया, आपका समर्थन किया, आपकी सहायता की तथा उस प्रकाश (क़ुरआन) का अनुसरण किया, जो आपके साथ उतारा गया, तो वही सफल होंगे। (हे नबी!) आप लोगों से कह दें कि हे मानव जाति के लोगो! मैं तुम सभी की ओर उस ईश्वर का दूत हूँ, जिसके लिए आकाश तथा धरती का राज्य है। कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं है, परन्तु वही, जो जीवन देता तथा मारता है। अतः ईश्वर पर विश्वास करो और उसके उस उम्मी पैगंबर पर, जो ईश्वर पर और उसकी सभी पुस्तकों पर विश्वास करते हैं और उनका अनुसरण करो, ताकि तुम मार्गदर्शन पा जाओ।।" (क़ुरआन 7:157-158)
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